The World is a Family:विश्व को अपना परिवार मान ले तो,आपसी क्लेश, ईर्ष्या और द्वेष स्वतः खत्म हो जाएंगे।

The World is a Family Concept From India :- हमारे भारतीय ग्रंथो मे एक सुन्दर श्लोक है। यह सिर्फ एक श्लोक नही है बल्कि यह हम भारतीयो की भावना को दर्शाता है। यह भावना ही हमे सिखाती है ईश्वर से प्रार्थनों करना की विश्व के सभी व्यक्ति सुखी रहे, रोगमुक्त रहे, जीवन मंगलमय हो व कोई दुःख का भागी न हो।

र्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्ति,मा कश्रित दुःख भाग्भवेत।

जीवो में ईश्वर दर्शन

ऐसी कामना का करना हमारी संस्कृति मे है तभी तो ऐसे श्लोको और सूक्तियों का संग्रह हमारे ग्रंथों मे विद्यमान है। चूँकी हम भारतीय जीव मे ही ईश्वर का दर्शन करते है तो फिर हम समग्र विश्व को अपना परिवार मानने से कैसे इंकार कर सकते है? और इस बात से कोई दोराय नही है की ‘वसुधेन कुटुम्बकम‘ का धेय्य भारतीय संस्कृति की ही देन हैं।

अपनत्व को बढ़ाना :The World is a Family

आज विश्व का भूगोल और पर्यावरण बदल रहा है परन्तु इस परिवर्तन मे नकारात्मकता ज्यादा नजर आ रही है। जिसका मूल कारण अपनत्व की भावना का लोप होना है जिसके कारण न केवल मनुष्यों अपितु देशो के मध्य भी तरह – तरह के मतभेद, द्वेष, आदि का जन्म हो रहा है। ऐसी स्थिति मे निवारण है अपनत्व की भावना को बढ़ाना लोगो के मध्य जो की सभी को अपना परिवार मानने से ही आएगी।

The World is a Family की भावना को विश्व में पहुँचाना

आज ‘वसुधेन कुटुम्बकम ‘ की भावना जो महान उपनिषदों में निहित है को सारे विश्व मे पहुँचाने की जिम्मेदारी हम भारतीयों पे है क्योकि समग्र विश्व मे भारत ही ऐसा देश है जो ‘अनेकता मे एकता‘ का अनूठा उदाहरण पेश करता है और इसी एकता और अखंडता के कारण हमने कई मुकाम अपने नाम किया है तो जरुरी है और ऐसी विचारधारा को खुद तक सीमित न कर समग्र जगत को इसकी लौ में प्रकाशित करें।

तकनीकी जीवनशैली का प्रभाव

आज की भाग-दौड़, की जीवनशैली मे जरूरत है मनुष्य को परस्पर प्रेम एवं स्नेह की जो लोगो का जीवन आनंदमयी बनाए। आधुनिकता इस युग मे विज्ञान का ही बोलबाला है और आज की स्थिति ये है की मानव तकनीकी का गुलाम बनने के करीब ही है या यह कहना गलत नही होगा वह गुलाम बन चुका। इस समस्या से निजात पाने का उपाय परिवारिक संवेदानाएँ को बढ़ाया जाया ताकि परिवार मे उल्लास का महौल हो जिससे मनुष्य का जीवन अनंदित हो जाए।

वसुधैव कुटुम्बकम की कल्पना की जा सकती हैं

कल्पना कीजिए यदि समग्र विश्व को हम अपना परिवार(The World is a Family) मान ये तो हमारे आपसी क्लेश, ईर्ष्या एवं द्वेष स्वतः खत्म हो जाएगे। देशों के मध्य रिश्तो मे सुधार होगा, मधुरता आएगी, सहयोग बढ़ेगा जिससे हम वर्तमान एवं भविष्य मे आने वाली चुनौतियों का सामना सरलता से कर पाएगा। हम अपने सुनहरे भविष्य का निर्माण ऐसी ही कल्पना से करने मे सफल हो पाएगे।

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‘वसुधेव कुटुम्बक’ की भावना यदि विश्व अपनाता तो ये पृथ्वी एक पुष्प की भांति खिल – खिला उठेगी और धरती को स्वर्ग बनाने का सपना सकार हो पाएगा।✒️”उर्मलिया’ उज्ज्वल त्रिपाठी

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