THAKUR JI STORY: भक्त के बस में हैं भगवान, ठाकुर जी के प्रेरक प्रसंग
THAKUR JI STORY MATHURA :– एक बार की बात है एक संत जगन्नाथ पुरी से मथुरा की ओर आ रहे थे उनके पास बड़े सुंदर ठाकुर जी थे। वे संत उन ठाकुर जी को हमेशा साथ ही लिए रहते थे और बड़े प्रेम से उनकी पूजा अर्चना करते थे। ट्रेन से यात्रा करते समय बाबा ने ठाकुर जी को अपनें बगल की सीट पर रख दिया और अन्य संतो के साथ हरि चर्चा में मग्न हो गए।
ठाकुर जी गाड़ी में ही रह गए | THAKUR JI STORY
जब ट्रेन रुकी और सब संत उतरे तब वे सत्संग में इतनें मग्न हो चुके थे कि झोला गाड़ी में ही रह गया उसमें रखे ठाकुर जी भी वहीं गाड़ी में रह गए। संत सत्संग की मस्ती के भावों में ऐसा बहे कि ठाकुर जी को साथ लेकर आना ही भूल गए। बहुत देर बाद जब उस संत के आश्रम पर सब संत पहुचें और भोजन प्रसाद पाने का समय आया तो उन प्रेमी संत ने अपने ठाकुर जी को खोजा और देखा की हॉय हमारे ठाकुर जी तो हैं ही नहीं।
संत रोने लगे | THAKUR JI STORY
संत बहुत व्याकुल हो गए, बहुत रोने लगे परंतु ठाकुर जी मिले नहीं। उन्होंने ठाकुर जी के वियोग अन्न जल लेना स्वीकार नहीं किया। संत बहुत व्याकुल होकर विरह में अपने ठाकुर जी को पुकार कर रोने लगे ।
तब उनके एक पहचान के संत ने कहा
महाराज मैं आपको बहुत सुंदर चिन्हों से अंकित नये ठाकुर जी दे देता हूँ, परंतु उन संत ने कहा की हमें अपने वही ठाकुर चाहिए जिनको हम अब तक प्रेम करते आये हैं।
तभी एक दूसरे संत ने पूछा – आपने उन्हें कहा रखा था ? मुझे तो लगता है गाडी में ही छुट गए होंगे।
एक संत बोले – अब कई घंटे बीत गए हैं। गाड़ी से किसी ने निकाल लिए होंगे और फिर गाड़ी भी बहुत आगे निकल चुकी होगी।
स्टेशन मास्टर से मिलने पर पता चला | THAKUR JI STORY
सब संत उन महात्मा को लेकर स्टेशन पहुंचे, स्टेशन मास्टर से मिले और ठाकुर जी के गुम होने की शिकायत करने लगे। उन्होंने पूछा की कौन सी गाड़ी में आप बैठ कर आये थे।
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संतो ने गाड़ी का नाम स्टेशन मास्टर को बताया तो वह कहने लगा – महाराज ! कई घंटे हो गए, यही वाली गाड़ी ही तो यहां खड़ी हो गई है, और किसी प्रकार भी आगे नहीं बढ़ रही है। न कोई खराबी है न अन्य कोई दिक्कत कई सारे इंजीनियर सब कुछ चेक कर चुके है परंतु कोई खराबी दिखती है नही।
महात्मा जी बोले – अभी आगे बढ़ेगी, मेरे बिना मेरे प्यारे कही अन्यत्र कैसे चले जायेंगे ?
ठाकुर जी गाड़ी में ही अपने स्थान पर बैठे थे
वे महात्मा अंदर ट्रेन के डिब्बे के अंदर गए और ठाकुर जी वही रखे हुए थे जहां महात्मा ने उन्हें पधराया था। अपने ठाकुर जी को महात्मा ने गले लगाया और जैसे ही महात्मा जी उतरे गाड़ी आगे बढ़ने लग गयी।
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ट्रेन का चालाक, स्टेशन मास्टर तथा सभी इंजीनियर सभी आश्चर्य में पड़ गए और बाद में उन्होंने जब यह पूरी लीला सुनी तो वे गदगद हो गए। उसके बाद वे सभी जो वहां उपस्थित उन सभी ने अपना जीवन संत और भगवन्त की सेवा में लगा दिया।
मित्रों भगवान भी खुद कहते हैं
भक्त जहाँ मम पग धरे, तहाँ धरूँ में हाथ।
सदा संग लाग्यो फिरूँ, कबहू न छोडू साथ।।
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