TAPTI MAHIMA TRATIY ADHYAY: ताप्ती महिमा तीसरा अध्याय रामक्षेत्रप्रभाव।

गंगाजी में कई दिनों तक स्नान करने से नर्मदाजी के जल के दर्शन करने से और सरस्वतीजी के संगम का जल पीने से जो पवित्रता होती है, वही पवित्रता मनुष्य को ताप्तीजी के स्मरण मात्र से हो जाती है। यह ताप्तीजी नदीयों में सबसे प्राचीन है।

TAPTI MAHIMA TRATIY ADHYAY :- पूर्वकाल में दोनों किनारों के क्षेत्रों को पवित्र करने वाली अनेक तीर्थो से शोभित सागर में समाने वाली सूर्यपुत्री लोगों को पवित्र कीजिये। सतयुग में ब्रह्माजी और शंकरजी ने त्रेतायुग में रामचन्द्रजी ने ओर द्वापर में कृष्ण तथा हल के हथियार वाले बलराम ने भी आपका यशोगान किया है। हे शार्कसुता! हमें भी पवित्र कीजिये। आपके तटपर मुनियों के सुन्दर आश्रम है। पापियों के अगम्य पापों को धोने वाली सब देवताओं द्वारा सेवित सूर्यपुत्री हमें भी पवित्र कीजिये। पूर्वकाल में कमल के समान मुखवाली पार्वती सहित कैलाश पर्वत पर वास करते हुये, त्रिपुरारी शंकरजी ने, राग-द्वेष रहित अंतःकरण वाले कार्तिकेय स्वामी को ऐसे वचन कहे थे, तब स्कंद बोले – हे प्रभु! इन प्राचीन महान नदियों में सूर्यपुत्री ताप्तीजी का कोई महत्व है या नहीं है?

शंकर जी स्कन्द से बोले | TAPTI MAHIMA TRATIY ADHYAY

सूर्यपुत्री ताप्तीजी की बड़ी महिमा और महात्म्य है। पुरातनकाल में जो नारदजी ने कहा था, वह मेरे द्वारा ही कहा हुआ ही था। मैने ही उन्हें कहा था। जब गंगा, सरयु, नर्मदा, गोमती, साम्रमति, भाषा आदि नदियों नहीं थी, जब विश्वकर्मा विश्व में जन्में नहीं थे तब से सूर्यपुत्री ताप्तीजी प्रगट हुई है। गंगाजी में कई दिनों तक स्नान करने से नर्मदाजी के जल के दर्शन करने से और सरस्वतीजी के संगम का जल पीने से जो पवित्रता होती है, वही पवित्रता मनुष्य को ताप्तीजी के स्मरण मात्र से हो जाती है। यह ताप्तीजी नदीयों में सबसे प्राचीन है।

सूर्यदेव से उत्पन्न, यह सुमेरूपर्वत शिखर से मानो धर्म की रेखा उतरी है। नदियों के समूह में उत्तम, कण-कण में पवित्र यह ताप्तीजी पापी मनुष्यों के द्वारा सेवन योग्य नहीं है। शंकरजी बोले हे पुत्र ! अपने मानस पुत्रों पर स्नेह करने वाले ब्रम्हाजी ने अंधकारयुक्त जगत को आलोकित करने, अंधकार का नाश करने के लिये और जगत को तेजोमय बनाने के लिये जिस देवता को भेजा वे सूर्यदेव, ब्रम्हदेव के मानस पुत्र कहलाये।

सूर्यदेवता का ताप दूर करने हुआ ताप्ती का जन्म

तब सदा अधकार का नाश करने वाले और विश्व का उपकार करने वाले सूर्य देवता के ताप को देखकर पुत्र का तापजनित क्लेश दूर करने के लिये पुण्यदायिनी, रात्री रूपी अंधकार को दूर करने वाली महान ताप्तीजी को प्रगट किया। स्कन्द बोले- हे शंकरजी! आपने प्रसन्न मन से विचारकर, मनुष्यों की मानसिक पीड़ा को हरने वाला जो वृत्तान्त कहा था और ब्रम्हाजी के पुत्र नारद मुनि ने जो ताप्तीजी का सुन्दर पवित्र स्तोत्र कहा था, वह बताईये। शंकरजी मुदित मन से बोले हे नन्दन ! सुनो। जो संपूर्ण पुरातन इतिहास है, वह तुम्हारे सामने कहता – हूँ। जब महाशक्तिवान राजा भगीस्थ ने बहुत वर्षों तक तपस्या की तब भी गंगाजी प्रगट नहीं हुई, तब दुखी मन से उन्होंने ताप्तीजी की स्तुति की। श्री ताप्तीजी प्रसन्न हुई।

स्नान करने से पितरों को मुक्ति मिलेंगी

राजा भगीरथ से उसके पूर्वजो के उद्धार के लिए बोली – यह क्षेत्र शीघ्र फलदायक हैं। इसमें सनान करने वाले मनुष्य अपने पितरों को तारेंगे। जब सूर्य कन्या राशि में हो तब पिण्डदान करने से मनुष्य मातृ ऋण से मुक्त होकर ब्रहमपद को प्राप्त करेगा। इसमें स्नान के सिवाय कोई अन्य उपाय नहीं हैं। हे पुत्र !जो निसंतान हैं , उनका श्राद्ध मित्रगण भी यहाँ कर सकते हैं। निसंतान भी यहाँ इस प्रकार के श्राद्ध के कारण मुक्त होकर स्वर्ग जाते हैं। पाप को शीघ्र नाश करने वाली , मनुष्यों को मोक्ष देने वाली और पापी मनुष्यों के दुःख दूर करने वाली यह श्रेष्ठ नदी हैं। कन्या राशि में सूर्यग्रहण का समय दुर्लभ होता हैं। इस क्षेत्र में कन्या राशि में सूर्यग्रहण का योग श्री रामचन्द्रजी को तक नहीं मिला था तो अन्य मनुष्यों को कैसे प्राप्त होगा।

कन्या राशि में सूर्यग्रहण पर होता हैं पुण्य लाभ

प्रयाग तीर्थ में एक वर्ष तक स्नान करने से जो पुण्य प्रपात होता हैं वह पुण्य सूर्य के कन्या राशि की स्तिथि में ताप्ती जी में पंद्रह दिनों के स्नान से मिल जाता हैं। इसी वन में सनन्दन मुनि की कृपा से श्री रामचंद्र जी ने पिता की उतरति क्रिया की थी। हे पुत्र ! वस्त्र के पानी के छींटो से भी यहाँ पूर्वज प्रसन्न होते हैं। सोलह श्राद्ध किये बिना भी वे स्वर्ग जाते हैं। सतयुग में शंकर जी के हाथों से तर्पण करने पर योगियों की आत्मा को प्रेत योनि से छुटकारा मिला था और उन्होंने सतगति पाई थी। उस समय आकाशवाणी हुई थी -” हे नाथ ! आपके इस स्थान गीरिनन्दिनी पर तर्पण करने से हमें प्रेत योनि से छुटकारा मिला हैं।

दक्षप्रजापति ने भी यहाँ मुक्ति पाई

अतः गिरीनन्दिनी नामक इस स्थान पर तर्पण करने से पूर्वजों की मुक्ति होगी। यह संगम महाप्रभावशाली है। पृथ्वी पर मनुष्यों के लिये यह रामक्षेत्र दुर्लभ है। यहाँ दक्षप्रजापति ने पुत्री-हत्या के पाप से मुक्ति पाई थी। जिसके मन निर्मल है तथा मन में परमात्मा प्रकाशित है, उनके द्वारा त्रिवेणी संगम पर यथाविधि स्नान ध्यान, योगाभ्यास, सांख्ययोग के तत्वज्ञान के बिना भी, इस तीर्थ के सेवन करने मात्र से मनुष्य परमपद को पा जाते है। दुष्ट पापी मनुष्य भी इस तीर्थ में स्नान करके सद्‌गति को प्राप्त करते है। हे पुत्र! अर्जुन ने विराटनगर जाने के पहले गौसेवा के लिये यहीं वाण धोये थे। यहीं अर्जुना नामक पापों का नाश करने वाली नदी ताप्ती के साथ सागर तक बही है।

पुत्री के पुत्र से हुआ उद्धार

यह राम क्षेत्र अनन्त पापों का नाश करने वाला है। यह तीर्थराज मनुष्यों को मुक्ति देने वाला है। इस तीर्थ में पुत्री के पुत्र ने राजा जयकेतु का उद्धार किया था। स्कन्द बोले- पुत्री के पुत्र द्वारा जयकेतु का उद्धार क्यों हुआ? इसमें मुझे आश्चर्य है! हे प्रभु! मुझे विस्तार से बताईये।

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श्री शंकरजी बोले कान्यकुब्ज देश में महोदया नामक नगरी है। वहाँ परम धार्मिक राजा जयकेतु राज्य करता था। वह राजा ब्राम्हणभक्त और प्रजा के हित में था। वह सदा प्रजाहित में लगा रहता था। वह गौ, भूमि, सोना और रत्नादि नाना प्रकार के दान रत रहता करता रहता था। उसने कुरूक्षेत्र में कई प्रकार के दान किये। उसके द्वारा इसी प्रकार दिन-रात दान-यज्ञ करते हुये एक वर्ष बीत गया।

आगे शंकर जी बोले | TAPTI MAHIMA TRATIY ADHYAY

उसके राज्य में अश्वमेघ यज्ञ किये बिना ही उसे यज्ञ का फल प्राप्त हुआ। उस राजा ने सन्तान प्राप्ति हेतु शंकरजी की आराधना की। शंकरजी प्रसन्न हुये और उन्होंने राजा को वरदान माँगने को कहा। राजा ने कहा हे प्रभु! मुझे सन्तान नहीं है, वह दीजिये। शंकरजी बोले हे राजन! निश्चय ही इस जन्म में तुम्हें पुत्र योग नहीं है। तुम्हें शीघ्र ही एक पुत्री प्राप्त होगी।

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राजा ने कहा– आप तो शुभाशुभ कर्मफलों के दाता है, अतः पुत्र ही दीजिये। शंकरजी बोले तुम्हारे भाग्य में पुत्री ही है कहीं भी पुत्र सुख का योग नहीं है। वह राजा अपने पूर्वकर्मों का फल मानकर फिर भी आन्नदित हुआ और सन्तुष्ट होकर नगर में आया। वह अपनी पत्नी से बोला तुम्हें पुत्री होगी। उस महात्मा राजा को पुत्री हुई।

यह अध्याय बहुत बड़ा होने की वजह से दो भागो में लिखा जा रहा हैं इसके आगे का वृतांत पड़ने के लिए इस पिले रंग पर टच करें अगला भाग

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