TAPTI MAHIMA TRATIY ADHYAY 1: ताप्ती महिमा तीसरा अध्याय रामक्षेत्रप्रभाव भाग १ ।

TAPTI MAHIMA TRATIY ADHYAY 1 :- पुत्र जन्म पर जो ख़ुशी होती हैं , वैसी ही ख़ुशी उन्हें पुत्री जन्म के सन्देश से हुई। समय पूर्ण होने पर रानी ने अतिसुंदर कन्या को जन्म दिया। उसका नाम वसुप्रभा रखा। शीघ्र ही वह कन्या बड़ी हो गई। उस समय सूर्यसेन नामक राजा विराट देश में राज्य करते थे। सूर्यसेन के पुत्र वीरसेन के साथ वसुप्रभा का विवाह हो गया। उसने एक बुद्धिमान पुत्र को जन्म दिया। पुत्री को पुत्र हुआ ये बात सुनकर जयकेतु अति प्रसन्न हुए और उन्हें स्वयं के पुत्रवान होने जैसी ख़ुशी हुई। कुछ समय पश्चात सत्य प्रतिज्ञ राजा जयकेतु प्रौढ़ावस्था को प्राप्त हुये और देवयोग से मृत्यु को प्राप्त हुये।

राजा जयकेतु प्रेत योनि में गए | TAPTI MAHIMA TRATIY ADHYAY 1

वह राजा करमगति से प्रेत हुआ। अंतरिक्ष में जाते हुए उसने ,उसने वहा बड़े भयंकर क्रूर काले रंग के यमदूतों को देखा । उसके बाद वह कुम्भ योनि में गया। वहा उसने अगस्त मुनि का आश्रम देखा। उस आश्रम में जाकर मुनि को प्रणाम करके राजा ने पूछा हे मुनिश्रेष्ठ ! ये विकराल महाकाय बड़े- बड़े दांत वाले महाक्रूर और बड़ी- बड़ी पिली आँखों वाले यमदूत किस कारण से मारो काटो ऐसे वचन से धरती को कम्पित कर रहे हैं।

मुनि राजा से बोले

हे राजन ! तुमने बहुत दानधर्म किया हैं और अच्छे कर्म किये हैं। इस धरती पर तुम्हारे सामान कोई राजा नहीं हुआ हैं किन्तु तुम पुत्रहीन हो इसलिए यमदूत आते हैं। वे दुष्ट भावना वाले तुन्हे पुन्नाम नरक मे डालेंगे क्योकि पुत्रहीन मनुष्य ही पुन्नाम नरक में डूबता हैं फिर भी तुम्हे पुण्यवान जानकार वे दूत तुम्हारे पास आने से डरते हैं। जब तक तुम्हारी पुत्री का पुत्र रामक्षेत्र में जाकर तुम्हारा उद्धार नहीं करता , तब तक तुम यहीं निवास करो।

TAPTI MAHIMA TRATIY ADHYAY 1

मेरे पास तब तक राहों जब तक तुम्हरी पुत्री का पुत्र रामक्षेत्र में पिण्डदान नहीं कर देता। उसके वह पिण्डदान करने से तुम्हारे लिए स्वर्ग से विमान आयेगा और देवता तुम पर पुष्पवर्षा करेंगे। हे पुत्र ! अभी तुम धर्मराज के पास जाओ। ऐसा कहकर अगस्त मुनि चले गये। दो काले रंग के बलवान कुत्ते यम मार्ग से आये , उनके दांत बड़े विक्रलथे और आँखे बड़ी -बड़ी लाल रंग किए थी। पापी प्राणियों को दण्ड देने के लिये याम के दरवाजे पर उन्हें रखा गया था , पर उन्होंने पूंछ हिलाकर राजा का नमस्कार किया । उसके बाद वह राजा यमलोक में गया। परम धार्मिक और दानी होने के कारण उसे सुन्दर नारियों का समूह दिखाई दिया।

दानपुण्य के कारण राजा ने भोग भोगे

वे नारिया जल से भरा हुआ घड़ा लिये हुये थी। वे गले में हार और पैरों में पायल से सजी हुई थी। उन्होंने कहा हे महाराज ! यह जल पीजिये और सुन्दर स्वादिष्ट भोजन कीजिये। यह सुख आप जैसे लोग ही भोग सकते है, क्योंकि यज्ञशाला में आपने बहुत अन्नदान किया है। किन्तु पुत्र न होने के कारण तुम्हें यमलोक में आना पड़ा इसी समय धर्मराज उसके सामने आये और बोले हे वीर राजा! तुम शीघ्र ही हमारे पुन्नाम नामक नरक में जाओगे। ऐसा कहकर स्वयं धर्मराज उनका हाथ पकड़कर उन्हें पुन्नाम नरक में ले गये। वहाँ उन्होंने पुन्नाम नरक में स्थित जीवों को देखा।

यमदूतों के द्वारा उन जीवों को मारा जाता था और नरक में डुबकी लगवाई जाती थी। राजा यमदूतों से बोले दया कीजिये यहाँ के इन प्राणियों को मुक्त कीजिये, इन्हें मेरे पास आने दीजिये। दूत बोले– हे पुण्यात्मा! यहाँ ये प्राणी अपने किये हुये पापों स्त्रीघात, बालघात, ब्रम्हघात आदि कुकर्मों के फलों को भोगते है। इन पर दया मत करो। राजा बोले- हे यमसेवकों! यदि इन पापियों को मुक्त नहीं करते हो तो मैं ही इन पापियों के दुख को दूर करूगा। राजा के ऐसा कहने पर यमदूतों ने पापियों को लौहमुग्दर से मारना बन्द किया। बाद में उस राजा के लिये जो भोजन आता उसमें से आधा वह राजा उन प्राणियों को बॉट देता था।

मुनियों और राजा के नाती ( सत्यसंघ ) की चर्चा

कुछ समय बाद राजा का दौहित्र अर्थात पुत्री का पुत्र सत्यसंघ सोलह वर्ष का हो गया। वह श्रद्धालु, सत्यव्रत जितेन्द्रिय कुछ वीर सैनिकों के साथ शिकार करते हुये महावन में भटक गया। उस महावन में वह दोपहर तक रहा। उसके बाद प्यास से त्रसित थका हुआ वह भटकते भटकते उस वन के एक वटवृक्ष के पास गया। वहीं उसने गर्ग, अंगिरा, कुत्स, सुमन्त और जैमिनी इन पाँच ऋषियों को देखा और वह राजपुत्र शीघ्र घोड़े से उतरा।

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उसने घोड़े से उतरकर उन ऋषियों को नम्रतापूर्वक साष्टांग दण्डवत किया। मुनियों ने कहा– हे महिपति । चिरंजीव हो। ऐसा आशीर्वाद देकर उन्होंने राजा से कुशलक्षेम पूछी। राजा ने मुनियों से पूछा आप यहाँ किसलिये पधारें है? मुनि बोले– हे महामति राजन! हम राजेन्द्रतीर्थ की यात्रा पर जा रहें है। कन्याराशि में सूर्यग्रहण का योग होगा इसलिये हम यात्रा पर निकलें हैं। राजा बोला हे मुनियों! मैने ब्राम्हणों से भास्कर तीर्थ के बारे में सुना है पर मुझे संशय है, अतः आप मुझे बताईये कि इस सूर्यग्रहण पर गंगा के नैमिषारण्य, कुरूक्षेत्र के पुष्करराज, द्वारका, अयोध्या, प्रयाग में संगम पर या गंगासागर पर, इन सबमें सबसे उत्तम कहाँ है?

मुनियों की चर्चा

गर्ग बोले- हे पुत्र ! प्रयागराज संगम अथवा गंगासागर संगम पर जाने की आवश्यकता नहीं है। यदि कन्या राशि में सूर्यग्रहण का योग हो तो यहाँ ताप्तीतट के रामक्षेत्र के तीर्थ में स्नान करना सर्वोत्तम है।

अंगीरा ऋषी बोले- हे पुत्र! सूर्य के कन्याराशि में होने पर सूर्यग्रहण का योग होने पर सचमुच ही सारे तीर्थ रामक्षेत्र में आ जाते है।

कुत्स मुनि बोले- ताप्ती नदी पर रामेश्वर तीर्थ है, यह तीर्थराज है परन्तु कन्या राशि में सूर्यग्रहण का योग होने पर यह अतिदुर्लभ हो जाता है। पापी मनुष्यों को यह योग मिल ही नहीं सकता।

सुमन्त ऋषी बोले– हे राजन! जब सूर्यदेव कन्या राशि में हो, तब रामक्षेत्र तीर्थ के जल सेवन से तीनों कुलों का उद्धार होता है।

जैमिनी ऋषी बोले- मैने इस तीर्थ को द्विव्य ज्ञान दृष्टि से देखा है, इस रामक्षेत्र में नैमिषारण्य तीर्थ है। हे पुत्र ! वह नैमिषारण्य तीर्थ यहीं है अतः कोई दूसरा तीर्थ इसके बराबर नहीं है।

यह भी देखे :-TAPTI MAHIMA DVITIYA ADHYAY: देखें ताप्ती जी के 21 नाम और उनका महत्व, ताप्ती महिमा द्वितीय अध्याय में।

मुनियों के कथनानुसार वह राजपुत्र भी रामक्षेत्र जाने को तैयार हुआ। थकान मिटाकर जल पीकर मुनिगण लौट गये। उस राजा ने मुनियों के कथनानुसार करने के लिये महल जाकर बहुत सा धन लेकर और महान ब्राम्हणों को बुलाकर सूर्यपर्व में रामतीर्थ का सेवन करने के लिये प्रस्थान किया। वह शीघ्र ही सूर्यपर्वयोग में रामतीर्थ पहुँचा। उसमे वहाँ स्नान करके बहुत दान दिया हैं। उसने वहा रात -दिन सोना , भूमि , रत्न और अन्नदान से अपने पूर्वजों का तर्पण किया । उसके प्रभाव से देवदूत , सूर्य के समान प्रकाशित विमान लेकर राजा जयकेतु के पास आये

यमदूत,राजा और देवदूतों की चर्चा

देवदूत बोले – हे महिपति ! क्योंकि तुम्हारी पुत्री के पुत्र ने तुम्हारे लिये दसअश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य कमाकर आपको यह दिव्यपद दिलाया है इसलिये तुम इस रथ पर चढ़ो। जिससे तुम्हारा जन्म मरण का बंधन छूट जायेगा और तुम्हारे पुंन्नाम नर्क का अंत हो जायेगा। राजा जयकेतु बोले हे देवदूत ! इन पापियों को छोड़कर मैं स्वर्ग नहीं जा सकता क्योंकि बहुत दिनों तक मै इनके साथ पुन्नाम नरक में रहा हूँ।

मुझे भले ही नरक में रहना पड़े किन्तु ये पापी स्वर्ग जाये। यम बोले- हे राजन! पापियों को और तुम्हें हम नहीं छोड़ सकते क्योंकि पुत्रहीन को पुन्नाम नरक भोगना ही पड़ता है। यमदूतों और राजा से देवदूत बोले- जिसका पुत्र से भी अधिक प्यारा नाति पृथ्वी पर है और जिसने पुण्यकर्मों से इतना पुण्य कमाया है कि वह राजा को नरक में नहीं रहने देगा। हे राजन! आपके नाति ने रामक्षेत्र में, दस अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य कमाया हैं।

राजा ने पुत्री का पोषण पुत्र से ज्यादा किया

तुमने तो पुत्री का पालन-पोषण पुत्र से भी बढ़कर किया था। उसका पुत्र आपका नाति रामक्षेत्र में गया है। उसने वहाँ सूर्यपर्व में स्नान करके बहुत दान दिया है, जिसके पुण्य प्रभाव से राजा जयकेतु ने परमपद को प्राप्त किया है। यमदूत बोले- राजा को परमपद मिले, पर इन पापियों को परमपद क्यों मिलेगा? देवदूत बोले- इस राजा के पोते के पुण्य प्रभाव से ये पापी भी तरेंगे। ऐसा सुनकर राजा देवदूतों से बोले- मेरे पुण्य में से आधा पुण्य देने से क्या ये पापी स्वर्ग जा सकते हैं? यमराज के सामने ऐसा बोलते हुये, राजा ने उन पापियों को बन्धन मुक्त कराया जिससे वे द्विव्य देहधारी बने।

सारे पापी स्वर्ग चले गए | TAPTI MAHIMA TRATIY ADHYAY 1

यमदूतों ने उनसे हार मानकर पापियों को भी स्वर्ग जाने दिया। राजा भी देवदूतों के साथ विमान पर चढ़कर ब्रम्हलोक गये। जो मनुष्य रामक्षेत्र का महात्म्य श्रद्धायुक्त होकर सुनेगा, उसके पुण्य के सामने अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य प्रभाव भी कम है। यदि कोई पापी मनुष्य भी सूर्यपर्व में रामक्षेत्र जायेगा तो वह नरक में पड़े हुये अपने पितरों का उद्धार करेगा, इसमें संशय नहीं है।

जो रामक्षेत्र में मृत्यु को प्राप्त होगा वह ज्योतिर्मय होकर विष्णुलोक पायेगा। यहाँ श्रीराम ने भी अपने पितरों के लिये मिट्टी का एक पिण्डदान किया था, जिससे उनके को पितर देवत्व को प्राप्त हुये थे। लक्ष्मणजी दोनों हाथों से भी उस मिट्टी के पिण्ड को नहीं उठा सके थे, यही पिण्ड रामेश्वर कहलाया, जिसके दर्शन मात्र से दर्शनार्थी के पितर स्वर्ग जाते है।

यह भी देखें :-TAPTI MAHIMA: ताप्ती महिमा प्रथम अध्याय तपत्या अष्टोत्तरी।

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