TAPTI MAHIMA: ताप्ती महिमा प्रथम अध्याय तपत्या अष्टोत्तरी।

TAPTI MAHIMA:-ताप्ती जी श्रष्टी की प्रथम नदी है जो की आदि गंगा के नाम से भी जानी जाती हैं। माँ ताप्ती के जल में रोग दूर करने की शक्ति हैं, ताप्ती जी का जन्म भगवान सूर्य के तेज से हुआ इसी वजह से भगवान शनि, यम और यमुना इनके भाई और बहन हुए है।

TAPTI MAHIMA PRATHAM ADHYAAY :- हम इस सिरिज में माँ ताप्ती महत्व का वर्णन जिस पुराण में किया गया है उस माँ ताप्ती पुराण के सारे अध्यायों को समय -समय पर Naradzee.com के माध्यम से शेयर करते रहेंगे। माँ ताप्ती से जुड़े इतिहास के कुछ अंश TAPTI JI KI AARTI पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं।

प्रथम अध्याय तपत्या अष्टोत्तरी | TAPTI MAHIMA PRATHAM ADHYAAY

बहुत समय पहले कैलाश पर्वत पर श्रीं शंकरजी ने देवताओं की सभा में सूर्यपुत्री तपतिजी का माहात्म्य कार्तिकेय स्वामी की सुनाया था। उस सभा में उपस्थित रोमेश मुनि ने भी यह माहात्म्य सूना,उसके बाद उन्होंने गोकरणमुनि को सुनाया। गोकर्ण ने रोमेश से सुना हुआ, सम्पूर्ण उत्तम माहात्म्य द्वापर के अंत में धरती पर मुनियों को सुनाया था , तब उन मुनियों ने इस सम्पूर्ण अद्भुत महात्म्य को गोकर्ण से सुनकर और रोमांचित होकर कहा – मुनियों ने कहा – सभी मुनियों ने गोकर्ण से पूछा – हे मुनिश्रेष्ठ गोकर्ण ! तापतिजी के दोनों तटों पर स्तिथि तीर्थों का विवरण संक्षेप में बताइये।

गोकर्ण बोले – हे मुनियों ! TAPTI MAHIMA सुनो –

सारे महालिंग ताप्ती जी के दोनों तटों पर हैं, महापाप को हरने वाले हैं। धर्मक्षेत्र में धर्मेश , तापने में तपनेश गोकर्ण में सिद्धनाथ और पार्वतीवन में महेश है और च्वनक्षेत्र में उत्तम सुजातीश्वर और निष्कलंक मुनि के क्षेत्र में पांच शिखा वाला पंचशिख लिंग हैं। राजा पुरुरवा के क्षेत्र में नरवाहन लिंग है और बाल क्षेत्र में बाल नामक लिंग नागकेशर के पुष्प के सामान है ,उसी प्रकार श्रावण क्षेत्र में अन्धकेश्वर तथा कंकोला संगम पर कोड नामक अद्भुत लिंग हैं।

शुभ्र पुण्डरीकेश्वर लिंग

पांचाल मुनि के क्षेत्र में शुभ्र पुण्डरीकेश्वर लिंग हैं। उसके बाद जैमिने मुनि के क्षेत्र में हरिचन्द्रेस्वर लिंग हैं। गाधीपुत्र विश्वामित्र के क्षेत्र में भुवनेश महालिंग हैं। वैरोचन नामक क्षेत्र में वैरोचनेश्वर नामक लिंग हैं। वहां कनकोलकुटाक्ष में गाधेस्वर का आवाहन करना चाहिए।

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वन्हिक्षेत्र में अर्बुद नामक नलेश्वर महालिंग हैं। उसके बाद कर्कोटक में धुन्धुमारेश्वेर महालिंग का आवाहन करना चाहिए। उसी क्रम में हयग्रीव और महान पंदमकोशेश्वर के महालिंग हैं। कार्तवीर्य नामक क्षेत्र में खद्योतन लिंग का आवाहन करना चाहिए। उसके बाद कुब्जक क्षेत्र में श्रीकंठ और किन्नर क्षेत्र में सुकंठ लिंग हैं।

भृगु के क्षेत्र में चंद्रचूड़ नामक लिंग

उसके बाद में महात्मा भृगु के क्षेत्र में चंद्रचूड़ नामक लिंग हैं। वही काम को नष्ट करने वाला पाशुपात लिंग हैं। भारक क्षेत्र में भारेंश और शशिभूषण में सहा नामक लिंग हैं। वसिष्ट मुनि के क्षेत्र में मुचकुंदेश्वर लिंग हैं। वहीं कुतलक़ बुधेश का विमलेश्वर लिंग हैं। उसके बाद कुश मुनि के क्षेत्र में कमल लिंग का आवाहन करना चाहिए। वहीं पर कालकूट विष पीने वाले शंकरजी का नीलकंठ नामक महालिंग हैं। अरुंधती वन में शांतेश कुंजर लिंग का आवाहन करना चाहिए। वहीं पुष्कर नामक महान त्र्यंबक लिंग हैं। उसके बाद लक्ष्मीस्वयंवर क्षेत्र में दूर्वासेश्वर का उत्तम लिंग हैं।

जामदग्नेश और आशाप्रद्योतनेश्वर लिंग

उसके बाद जामदग्नेश और आशाप्रद्योतनेश्वर लिंग है। पूर्व में वामनेश और सुन्दर क्षेत्र में सुन्दरेश लिंग है । राघव क्षेत्र में रामेश और सनंदन क्षेत्र में मृकंडेश और स्वरमंग मुनि के क्षेत्र में उष्णपकेश्वर लिंग है। युग्म क्षेत्र में परममहान उच्चैश्वरेश्वरम् का महालिंग है।

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नांदिक क्षेत्र में महापापों को हरने वाला नंदीश लिंग है नामक शक्ति का वास है, वहाँ सिद्धिप्रद लिंग है। उसके बाद नारद क्षेत्र में स्थालेश्वर और जहाँ अभया लिंग है। उसी कम में ब्रह्मक्षेत्र में प्रकाशा में सिद्धेश्वर लिंग है और मतंग मुनि के क्षेत्र में गंगेश्वर लिंग का आवाहन करना चाहिये।

अर्जुनेश महालिंग और श्री करेश्वर का उत्तम लिंग

बुद्धीमान अर्जुन के क्षेत्र में अर्जुनेश महालिंग है। उसके बाद युधिष्ठिर के क्षेत्र में श्री करेश्वर का उत्तम लिंग है। अम्बिकाक्षेत्र में महामोह के दोषों को दूर करने वाला अंबेश लिंग और कृष्णशिव क्षेत्र में श्री कल्मपापहम लिंग है। उसके बाद पंचमुख क्षेत्र में आमर्दकेश्वर लिंग है, और राम क्षेत्र में जहाँ सेना नामक उत्तम है। वहीं महापापों को हरने वाला सुंदर रामकुण्ड है। कपिलमुनि के क्षेत्र में श्री नदी सिंहेश्वर है, वहाँ रामेशं लिंग का उत्तम लिंग हैं। चतुर्भुजक्षेत्र में चातुर्भुजेश्वर लिंग है और उसके बाद कपिल क्षेत्र में प्रत्येश्वर का महान लिंग है।

व्याघेश्वर और बधिरेश्वर उत्तम लिंग | TAPTI MAHIMA PRATHAM ADHYAAY

वहाँ व्याघेश्वर और बधिरेश्वर उत्तम लिंग है और वहीं उसी क्षेत्र में भीमेश्वर लिंग है। उसके बाद विरहा नदी के तट पर मंत्रेश्वर लिंग का आवाहन करना चाहिये। वहीं पापों को नाश करने वाला शांत भूताधिपेश्वर लिंग है। उसके बाद आरोग्यदा क्षेत्र में आरोग्यदेश्वर लिंग है। गौतम मुनि के क्षेत्र में श्री गौतमेश्वर लिंग है।

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नारद क्षेत्र में गलितेश नामक महालिंग का आवाहन करना चाहिये। रत्ना नदी के तट पर महात्मा श्रीकंठ के क्षेत्र में, जहाँ षोडशी त्रिपुरसुन्दरी देवी का स्थान भी है, वहाँ रत्नेश्वर लिंग है। उसके बाद वरूण के महाक्षेत्र में भूतेश्वर लिंग है। उसके बाद भोग-मोक्षदायक वासवेश महालिंग है। उसके बाद भभीमकक्षेत्र में भीमेश्वर लिंग है।

करंकेश्वर का उत्तम लिंग | TAPTI MAHIMA

करंकपावनक्षेत्र में करंकेश्वर का उत्तम लिंग है। खंजनमुनि के क्षेत्र में खंजनेश्वर लिंग है। वहीं तीव्रपापनाशक वज्रकेश नामक लिंग है। महात्मा कश्यप के क्षेत्र में कश्यपेश नामक लिंग है। भैरवक्षेत्र में पापों को नाश करने वाला भैरव लिंग है और जहाँ शक्ति स्वरूपा भैरवी देवी है, वहाँ मोक्षेश्वर लिंग है। उसके बाद श्री धूतपाप नामक कामपालेश्वर का लिंग है।

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उसके बाद अत्रि मुनि के क्षेत्र में चंडेश्वर और मुक्तिदम लिंग है। उसके बाद भोगसुखदायक अर्धचान्द्रिक लिंग है। वहीं पर महान रत्नेश्वर महालिंग का आवाहन करना चाहिये। नीलांबरक्षेत्र में कोटिश्वर लिंगं गर्भवास से छुटकारा देने, वाला तथा संसार के बंधन से मुक्ती देने वाला है।

जपाला नामक लिंग | TAPTI MAHIMA PRATHAM ADHYAAY

जहाँ मोक्षदायक एकवीरा देवी का स्थान है, वहीं जपाला नामक लिंग है। उसके बाद राघव क्षेत्र में महान रूद्र लिंग का आवाहन करना चाहिये। उसके बाद तीव्र काले पापों को हरने वाला श्री दण्डपाणी लिंग है और राजा अंबरीश के क्षेत्र में अंबरीकेश्वर लिंग है। अश्वक्षेत्र में कांतारेश्वर का उत्तम महालिंग है।

उसके बाद गंगा महाक्षेत्र में श्री गुप्तेश्वर का उत्तम लिंग है। महात्मा लोमेश के महाक्षेत्र में लोमेश्वर लिंग है। उसके बाद ताप्ती के उत्तर किनारे पर वेदी के स्थान पर महापापनाशक विश्वेश्वर का कापालिक महालिंग है। उसके बाद पूर्व में सूर्य के महाक्षेत्र में सुरेश्वर लिंग है।

सोमेश और जनकेश्वर नामक लिंग

उसके बाद नारदेश और कौरव नामक महालिंग है और सोमक्षेत्र में सोमेश और जनकेश्वर नामक लिंग है। उसके बाद ज्ञान- मोक्षदायक मोक्षेश्वर लिंग है। उसके बाद कुमुदक्षेत्र में अटव्येश्वर का उत्तम लिंग है। उसके बाद राघव क्षेत्र में श्रेष्ठ रामेश्वर और शतानिक क्षेत्र में महापापों को हरने वाला सिद्धेश्वर लिंग है। तैतीस देवता के क्षेत्र में तनेश्वर नामक लिंग है और वहीं दर्भावती नाथ पिंडेश्वर का लिंग है। उसके बाद ताप्तीजी के समुद्र संगम पर जरत्कारमुनि के क्षेत्र में महापापापों को नाश करने वाला महान नागेश्वर लिंग है।

पुत्र और निर्धन को धन प्राप्त होगा

इसमें कोई संदेह नहीं कि ये तीनों तनेश्वर-पिंडेश्वर-नागेश्वर तीर्थ पाताल लोक में भी पवित्र माने जाते है। जो मनुष्य श्राद्ध के समय इस अष्टोत्तरी तीर्थों का श्रद्धा से पाठ करेगा, उसके पितर स्वर्ग में अमृत पीने जैसी तृप्ती से तृप्त होंगे। निपुते को पुत्र और निर्धन को धन प्राप्त होगा। मोक्ष की इच्छा करने वाले को मोक्ष मिलेगा।

इस अष्टोत्तरी मंत्र को पढ़ने वाले को और जो इसका सदा पाठ करेगा या सुनेगा उसे पृथ्वी पर सब तीर्थों के स्नान का पुण्य मिलेगा। इसमें कोई संशय नहीं है। इस प्रकार रोमेश के उपदेश से खंजनपुत्र गोकर्ण ने सूर्यपुत्री ताप्ती का महात्म्य कहा। मुनियों ने कहा- हे महामुनि! गोकर्ण नाम का अर्थ क्या है? गोकर्ण ने कहा- हे मुनियों! आप पूछते हो तो कहता हूँ। गोकर्ण ही संहिता है।

गोकर्ण नाम का अर्थ क्या है ?

स्वर्ग और पृथ्वी पर ताप्तीजी के उद्भव का मैने महात्म्य कहा है इसलिये भविष्य में गोकर्ण को महामुनि के रूप में पहचानोंगे। हजारों अश्वमेघ से जो गति नहीं मिलती, वही गति मनुष्य को ताप्तीजी के अष्टोत्तरी मंत्र सुनने से ही मिल जायेगी। गंगा गयाँ आदि तीर्थो मे स्नान, दान, स्तुति आदि करने से भी जो फल नहीं मिलता वह सूर्यपुत्री ताप्तीजी के प्रभाव को सुनने मात्र से मिल जायेगा। जो मनुष्य सदा पवित्र अंतःकरण वाले शुद्ध भाव से सूर्यपुत्री ताप्तीजी के इस अष्टोत्तरी मंत्र का पाठ करेगा या पंडित के मुख से सुनेगा, वह अपने पूर्वजों का उद्धार करते हुये परमपद को पायेगा।

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