TAPTI MAHIMA DVITIYA ADHYAY: देखें ताप्ती जी के 21 नाम और उनका महत्व, ताप्ती महिमा द्वितीय अध्याय में।
TAPTI MAHIMA DVITIYA ADHYAY :- ताप्ती महिमा के इस सीरीज में हम यहाँ द्वितीय अध्याय का अध्ययन करने जा रहे हैं। सब मुनियों ने ताप्तीजी के प्रभाव के समक्ष द्रवीभूत अन्तः करण वाले गोकर्ण से पूछा हे मुनि पुंगव गोकर्ण बताइये- मुनियों ने कहा – हे गोकर्ण ! कल्प-कल्पांतरों से प्रचलित ताप्ती जी के अलग अलग नाम बताइये। श्री गोकर्ण बोले – हे मुनियों ! गुप्त से गुप्त ताप्ती जी के नामों को सुनों जिनकी संख्या 21 हैं। इनके उच्चारण मात्र से मनुष्य गर्भवास के संकट से छूट जाता हैं और इसका पाठ करने वाला कोटि कुल के सभी पूर्वज सहित निरामय पद पाता हैं।
TAPTI JI KE 21 NAAM | गोकर्ण द्वारा बताये गए ताप्ती जी के 21 नाम
- सत्या
- सत्योदभवा
- श्यामा
- कपिला
- कपिलांबिका
- तापिनी
- तपनहृदा
- नासत्या
- नासिकोदभवा
- सावित्री
- सहस्त्राकरा
- सनकामृतस्यदिनी
- सूक्ष्मा
- सूक्ष्मतरमणी
- सर्पा
- सर्पविषापहा
- तिग्मा
- तिग्मरया
- तारा
- ताम्रा
- तापीति
ये ताप्ती जी के 21 नाम गोकर्ण जी ने मुनियों को सुनाये।
गोकर्ण जी द्वारा बातये इक्कीस कल्पों के नाम | 21 KALP KE NAM
- पदमक
- पोष्कर
- शौर
- शांभव
- चान्द्रम
- काश्यपेय
- उपेंद्र
- ऐन्द्र
- वारुणम
- महाबल
- महेशान
- मुकुला
- कुणालक
- प्राकृत
- मात्स्य
- कैला
- कूर्भ
- वराह
- आदिवराह
- कृष्णवराह
- स्वेतवराह
TAPTI MAHIMA DVITIYA ADHYAY में माँ ताप्ती के नाम का महत्व भी बताया
ये 21 कल्पनामों को गोकर्ण जी ने मुनियों को सुनाये। आगे कहा – हे मुनियों ! जो मनुष्य सूर्यपुत्री के इन इक्कीस कल्पनामों का सदा स्मरण करता हैं।
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जो नित्य सूर्यपुत्री के इन नामो का जाप करता हैं, वह कल्प के अंत तक देव – यक्ष – उरग पर विजय प्राप्त करके,उनका नाश करेगा। जो सदा सूर्यपुत्री माँ ताप्ती जी के नाम जपेगा उसका हजारों जन्मों के किये हुए पाप भस्म हो जायेंगे। बहुत से नाम जपने से या विशेषतः वेदों के पाठ करने से जो प्राप्त नहीं होता हैं , वह फल प्रातः काल उठकर माँ ताप्ती जी के नामों का स्तवन करने से प्राप्त जो जाता हैं। उसकी सभी कामनायें पूर्ण होगी मेस्मेन संशय नहीं हैं।
-: ताप्ती स्तोत्र :-
सत्या सत्योद्भवा श्यामा कपिला कापिलांबिका,
तापिनी तपनहृदा नासत्या नासिकोद्भवा।
सावित्री सहस्त्रकरा सनकामृतस्यंदिनी,
सूक्ष्मा सूक्ष्मतरमणी सर्पा सर्पविषापहा।
तिग्मा तिग्मरया तारा ताम्रा तापीति विश्रुता,
एकविंशतिनामानि तपत्याः कथितानि मे।
कल्पनामपिनामानि कथयिष्यामि सांप्रतम्,
पद्मकं पौष्करं शौरं शांभवं चान्द्रमेव च।
काश्यपेयमुपेंद्रंच ऐन्द्रं वारूणमेवहि,
महाबलं महेशानं मुकुलाख्यं कुनालकम्।
प्राकृतं मात्स्यकैलाख्ये कूर्भे वराहमेव च,
आदिवराहकंनाम कृष्णवराहकं तथा।
श्वेतवाराहकं प्रोक्तमेकविंशतिमं तथा,
कल्पान्येतानि मुनयोः नित्यं स्मरति सूर्यजाः।
मरूद्यक्षोरगं विश्वं कल्पांतेऽपि विनश्यति,
यो नित्यं सूर्यदेहाया नामजाप्यं करोतिच।
तस्य जन्मसहस्त्राणां पापंभवति भस्मसात्,
बहुभिर्नामजाप्यैः किं वेदजाप्यैश्च किं पुनः।
करोति प्रातरुत्थाय तापीनामस्तवं यदि,
स सर्वानलभते कामान् नात्रकार्या विचारणा ।।
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