TAPTI MAHIMA CHATURTH ADHYAY 1: ताप्ती महिमा चतुर्थाध्याय आषाढ़स्नानप्रभावः भाग 1 ।

TAPTI MAHIMA CHATURTH ADHYAY 1 :- श्री शंकर जी बोले – इस ताप्तीजी के किनारे सुन्दरक्षेत्र है। यहाँ आदिवराह की देह से निकली पयोष्णी नदी ताप्तीजी से मिली है। इस क्षेत्र का वर्णन महर्षियों ने किया है। यहाँ दैदिप्यमान भयंकर मुख वाले आदिवराह रूपी विष्णुजी पृथ्वी को भेदकर प्रगट हुये थे। यहाँ सत्यजीत नामक राजा ने कामधेनु की आराधना की थी। यह सुन्दर तट जिसका पितामह ने सदा सेवन किया था, यही ताप्तीजी का श्री सुन्दर क्षेत्र तीर्थ कहलाता है। द्वारिका, उज्जैन और गंगाधर के काशी तीर्थ में भी पितर उतने तृप्त नहीं होते जितना इस तीर्थ के जल में तर्पण करके, वस्त्रदान करने से उन्हें अमृतपान से भी अधिक तृप्ति होती है। यहाँ पितर गोत्री की एक अंजलिजल तर्पण की कामना करते है।

पापी को भी ब्रह्म लोग की प्राप्ति होंगी

यदि दुष्ट पापी भी इस क्षेत्र में मृत्यु पायेगा तो उसे भी ब्रम्हलोक की प्राप्ती होगी इसमें संशय नहीं है। कृमि, कीडे पक्षी, कुत्ते, उल्लू आदि भी इस क्षेत्र में मृत्यु पाये तो वे भी स्वर्ग जाते है, यह कितने आश्चर्य की बात है। गोदावरी में बीस वर्ष, कुरूक्षेत्र में छै वर्ष और गया में छ माह स्नान से भी इसके बराबर पुण्य नहीं मिलता, यह ऐसा कमल के समान श्रेष्ठ सिद्ध तीर्थ है।

TAPTI MAHIMA DVITYA ADHYAY

हे पुत्र! आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में जो मनुष्य पद्मक योग में इस तीर्थ को साधेगा उसका तीर्थफल तपस्या और यज्ञ के समान लाभप्रद होगा। आषाढ़ माह में यदि अमावस्या को सोमवार हो, सप्तमी को रविवार हो और चतुर्थी तिथि मंगलवार आती हो तो पद्मकपर्व कहलाता है। स्कंद बोले– हे कारण के कारण रूप शंकरजी आषाढ़ माह में पद्मकपर्व का क्या विशेष महत्व है? किस प्रकार से साधने पर यह सिद्ध होगा? यह बताइये —

शंकर जी स्कन्द से बोले | TAPTI MAHIMA CHATURTH ADHYAY 1

आषाढ़माह के शुक्लपक्ष में आषाढ़सुदी सप्तमी रविवार के दिन ताप्तीजी प्रगट हुई थी तब आषाढ़ माह का पद्मक पर्व का योग था। यह पर्व मनुष्यों के लिये दुर्लभ है। मनुष्यों को इसे किस प्रकार साधना चाहिये यह तुम्हें बताता हूँ। मनुष्य पर्वकाल में ताप्तीजी के किनारे तीर्थ स्नान करके बारह ब्राम्हणों को खीर आदि का भोजन कराये, उनका पूजन करके उन्हें वस्त्रदान करे तो वह मनुष्य अपने परिवार और मित्र सहित स्वस्थ रहेगा। यहाँ सूर्य को प्रसन्न करने के लिये पहले होम करे फिर यथाशक्ति दान करे, ऐसा करने वाले मनुष्य का सब कुछ अक्षेय रहता है। इस पद्मक पर्व में पत्नी के साथ फल-फूल, रत्नजड़ा कलश और स्वादिष्ट भोजन दान करने से वे अक्षय सुख के भागी होंगे।

इसी माह में विश्वकर्मा और अन्य देवताओ को बनाया

उपरोक्त दान देवें फिर यह मंत्र बोले– हे सूर्य से उत्पन्न हुई तापनाशिनी आषाढ़ माह में प्रगट हुई देवी ताप्ती! मेरा यह अर्घ स्वीकार कीजिये। जो मनुष्य आषाढ़ माह की सप्तमी के दिन एक बार भोजन करके शक्ति अनुसार श्रद्धापूर्वक जागरण करता है, तो उसे अक्षय सुख की प्राप्ती होती है। यदि मनुष्य इस पुण्य व्रत को कर ले तो उसके समान पुण्यवान दुनियों में कोई नहीं होगा। आषाढ़ माह के समान न माघमाह है न कार्तिक माह। इस माह में सृष्टिकर्ता ब्रम्हाजी ने विश्वकर्मा आदि श्रेष्ठ देवताओं को बनाया था।

भगवान विष्णु और लक्ष्मी भी योगनिंद्रा में सोते हैं

इसी माह में जगतपति विष्णुजी लक्ष्मीजी सहित सुखी होकर योगनिद्रा में सोते है। हे पुत्र! इसी आषाढ़ माह में सूर्यपुत्री ताप्तीजी के किनारे हवन करके अन्नदान आदि करने पर मनुष्य के सब प्रकार के पाप नष्ट हो जाते है। जो पुण्य मनुष्य को प्रयागराज जाकर बारह माह वास करने पर मिलता है, वह पुण्य ताप्तीजी में आषाढ़ माह मे रोज स्नान करने से प्राप्त हो जाता है। यदि कोई श्रद्धाहीन मनुष्य भी अचानक ही अषाढ़ माह में स्नान करेगा तो वह सब पापों से मुक्त हो जावेगा। यदि कोई मनुष्य इस आषाढ़ माह में ताप्तीजी में कपट से भी स्नान करेगा तो उसके सौ जन्मों के पापों को यमराज दूर करेंगे।

खेल खेल में स्नान करने से मिलता है दिव्य पद | TAPTI MAHIMA CHATURTH ADHYAY 1

यदि कोई बचपन में भी ताप्ती जल में यदि खेल-खेल में भी नहायेंगे तो वे देवता के समान अलंकृत होकर, देवमन्दिर की प्रतिमा के समान दिनों-दिन प्रकाशित होंगे और पुण्य प्राप्त करेंगे। कुँआ, बावली, तालाब आदि बनवाने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य आषाढ़ माह में ताप्ती स्नान करने से प्राप्त हो जाता है। यदि कोई मनुष्य किसी द्रव्यलाभ के लोभ से भी स्नान करेगा तो वह अपने पितरों को पापमुक्त करके अश्वमेघयज्ञ करने के बराबर फल प्राप्त करेगा।

यदि जाने अनजाने में भी यदि कोई आषाढ माह में ताप्तीजी में स्नान करेगा तो वह सब पापों से मुक्त होकर अश्वमेघयज्ञ के बराबर पुण्यफल पाकर अन्त समय में ब्रम्हपद को प्राप्त करेगा। जो ताप्तीजी की मिट्टी को शरीर में लेपन कर यहाँ स्नान करेगा, उसके जन्मान्तरों के पाप जल जायेंगे।

आषाढ़ सूर्यग्रहण में स्नान करने से स्वर्ग में वास होंगा

जो आषाढ़ माह में सूर्यग्रहण में ताप्ती और पयोष्णी संगम पर स्नान करेगा, उसके पुण्य का बखान ब्रम्हाजी भी नहीं जानते। जो मनुष्य आषाढ़ माह में सूर्यग्रहण पर स्वयं को सुगन्धित चन्दन से तौलेगा वह गन्धर्वो सहित हरि का प्रिय होगा। जो मनुष्य सूर्यपर्व में स्वयं को रूपयों से तौलेगा वह एक कल्प तक अर्थात एक हजार वर्ष तक सूर्यलोक में वास करेगा। जो मनुष्य स्वयं को सोने से तौलेगा वह मनुष्य एक कल्प तक गंधों का स्वामी बनेगा। जो आषाढ़ माह में सूर्यग्रहण के समय सफेद गाय का दान करेगा वह उस गाय के जितने रोम होगे उतने युग तक वह स्वर्ग में वास करेगा।

आषाढ़माह में दीपदान से पीढ़िया तर जाती हैं

जो आषाढ़ माह में थोड़ी सी भी भूमि का दान करता है उसके पुण्य की सख्या कोई नहीं जानता। आदिवराहके ‘समीप आदिवराह, आषाढ़, अर्कपर्व, आद्रानक्षत्र अर्कवार अर्थात रविवार ये पॉच अकार दंर्लभ है। वैसे बिना पद्मकपर्व और सूर्यग्रहण के भी इन पाँचों तिथियों में यहाँ वहाँ जब भी स्नान करके लोग धन्य हो जाते है। आषाढ़ माह में स्नान करके विश्वघातक पाप अर्थात बड़े से बड़ा पाप करने वाला भी यदि ताप्तीजी में प्रसंगवश यदि एक बार भी स्नान करे तो उसका कोई क्या करेगा यदि उसके पाप नष्ट हो जाते है। जो आषाढ़ माह में ताप्तीजी में दीपदान करते है, वे अपने कुल की कोटि सहस्त्र पीढ़ीयों को तार देता है।

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कुरूक्षेत्र में भूमि और सोना दान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वह पुण्यफल यहाँ प्रतिदिन दीपदान करने से प्राप्त हो जाता है। पूर्णिमा, अष्टमी, षष्ठी, सप्तमी और एकादशी को घी के दिये प्रज्वलित कर दीपदान करने से बड़े से बड़ा पाप भी नष्ट हो जाता है। जो मनुष्य ताप्ती जल लाकर उसको पीते है, उसके पुण्य की संख्या ब्रम्हदेव भी नहीं जान सकते।

सौ पीढ़ियों के पुण्य में वृद्धि होती हैं | TAPTI MAHIMA CHATURTH ADHYAY 1

आषाढ़ माह में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य केवल इस तीर्थ में पॉच दिन स्नान करने से प्राप्त हो जाता है। आषाढ़ माह में ताप्ती जी का जल पीकर मनुष्य अपने कुल की सौ पीढ़ियों में तेरह दिन स्नान करने से जो पुण्य वृद्धी होती है, वह यहाँ किसी भी दिन कभी भी को तार देता है। स्नान करने से प्राप्त भृगुक्षेत्र हो जाती है। आषाढ़ माह में ताप्तीजी में स्नान करने वाला मनुष्य जन्म-जन्मान्तर तक उग्र ताप से ग्रसित नहीं होता।

थोड़े से स्नान से पुण्य प्राप्त हो जाता हैं

कुरुक्षेत्र, काशी, नर्मदा स्नान करने से जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य ताप्तीजी में आषाढ़ माह में थोड़े से स्नान करने मात्र से प्राप्त हो जाता है। बाह्य शुद्धी और नित्य पाठ करने की भी आवश्यकता नहीं है, जो मनुष्य आषाढ़ माह में ताप्तीजल की मन में कामना भी कर लेता है, वह अपने एक वर्ष के पाप धो डालता है। हे पुत्र ! जो सदा ताप्ती स्नान करता है, उसका करोड़ों कल्प तक पुनर्जन्म नहीं होता। अश्वमेघ यज्ञ, गोदान, स्वर्णदान, भूमिदान और जल पीकर की गई तपस्या भी ताप्ती स्नान की बराबरी नहीं कर सकती।

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यह अध्याय बहुत बड़ा होने की वजह से दो भांगो में लिखा जा रहा हैं इसके आगे का भाग पढ़ने के लिए (अगला भाग ) इस पिले रंग पर टच करें अगला भाग।

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