TAPTI JI KI AARTI: सूर्य पुत्री माँ ताप्ती जी की प्राचीन आरती और गौरवशाली इतिहास।
Tapti Ji ki Aarti : Suryaputri Maa Tapti Multai Prachin Aarti
TAPTI JI KI AARTI IN MARATHI :- ताप्ती जी के इतिहास (Tapti Ji History) के बारे में कहा जाता हैं कि पृथ्वी की आयु के बराबर सूर्यपुत्री ताप्ती माता की आयु हैं। गंगा, नर्मदा आदि नदियों से भी प्राचीन हैं हमारी माँ ताप्ती। माँ ताप्ती का जन्म श्वेत वराह कल्प के प्रथम आषाढ़ शुक्ल पक्ष 7 (सप्तमी) रविवार युक्त पदमक पर्व काल में सूर्य भगवान के पसीना (धर्म) से उत्पन्न हुई है।
TAPTI JI KI MARATHI ARTI
आदि गंगा तापी माता वेद और पुराणों में प्रसिद्ध नदी है, इसके 21 कल्प हुए है। एक कल्प की वर्ष संख्या 4320000000 चार अरब बतीस करोड़ वर्ष है। यहाँ पर बने हुए कुण्ड देवताओ के द्वारा निर्मित है। समय-समय पर तत्कालीन शासको के द्वारा तापी की महिमा को जानकर उसका जीर्णोधार कराया है। “
“यदा न गंगा सरयू न रेवा गोमती न भ्रमति च विश्रा.
यदा न विश्व न च विश्वकर्मा तदा प्रयाता किल सूर्य देहा”.
गंगा, सरयू, रेवा, गोमती, साबरमती, वर्धा आदि नदियों के उत्पति के पूर्व जब, विश्व का सृजन विश्वकर्मा ने किया तब से सूर्यपुत्री माँ ताप्ती का जन्म माना जाता हैं।
ऊपर दी गई जानकारी माँ ताप्ति के उद्गम (Tapti ji udgam) स्थल मुलताई (Multai, MP) के क्षेत्र में बने मंदिर पर लिखे लेख से प्राप्त हुई है।
-:माँ ताप्ती जी की मराठी आरती :-:MARATHI AARTI OF MAA TAPTI JI:-
उठा हो सकाळी का हाती घेउन आरती!
ओवालु तापीला कन्या होय थे सूर्याची !!
तुझे च नाव घेता कली चे मर्दन होती !
जड़ जीवाला तारों हेच दासाची विनती !!
ताप्ती सागरा बाई ची पाण्या मन्धी जोत!
अम्रताची कुपी नारियलाची वाटी बाई च निशान हातात !!
सूर्याची कन्या बाई च मुलताई ठान !
नित्य सेवा करतीन येसे साधू बट ब्राम्हण !!
प्रातः काळी उठुन संत आंगोंली च करती !
पंच आरती करुन कापुर लावल्या च ज्योति !!
कार्तिक पूर्णिमा बाई च भरतों दरबार !
निम्बा नारेल उद का जरतों कपूर !!
हरदी कुकवाच बाई च चंदनाच लेन !
गुडा तुपा च बाई नित्य करते भोजन !!
गंगादास महाराज बोलतो आयका परिणाम!
चंदन पूरी दास आई चा फार आहे लींन !!
इस आरती (TAPTI JI KI AARTI) का उल्लेख 7/1/1985 से 13/01/1985 तक चली (मकर संक्राति के शुभ अवसर पर ) श्रीमद भागवत पुराण के निमंत्रण पत्र पर छपा हुआ मिलता है.
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