Sohan Rathore : आर्मी में जाने नहीं मिला तो बना ली अपनी आर्मी, जिद और जुनून का दूसरा नाम थे सोहन राठौर
शून्य से शिखर तक सफर करने वाला सितारा भले ही धरती से रिक्त हो गया पर,आज भी युवाओं के दिलों में धड़कता है .
Sohan Rathore Sonu Betul : आज भी जेएच कॉलेज के पास से गुजरते वक्त हजारों युवा शायद एक दबंग आवाज की रिक्तता महसूस करते होंगे। वह खालीपन अक्सर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर आते जाते लोगो को जय हिंद का अभिवादन न सुनाई पड़ने पर अखर जाता है। गर्मी के दिनों में वह प्याऊ लोगो को याद आता है जिसके आसपास तिरंगे के रंगो की मौजूदगी कंठ तर करने के साथ देश भक्ति का पाठ पढ़ाती थी। लोग कहते भी है कि वह था तब तक कॉलेज का दिल उसके गेट पर ही धड़कता था अब जेएच कॉलेज के मुहाने पर खामोशी पसरी रहती है।
सोहन भैया सब उन्हें इसी नाम से बुलाते थे, एक साल पहले नियति के कठोर प्रहार ने बैतूल के इस जिंदादिल इंसान को छीनकर यह साबित कर दिया कि मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है..लेकिन नियति सोहन राठौर की यादों को लोगों से जुदा नहीं कर पाई। एक ऐसा जुनूनी और जिद्दी युवक जिसे आर्मी में जाने का मौका मिलने के बाद भी न जा पाने का मलाल उम्र भर रहा और इस मलाल को दूर करने जिसने अपनी खुद की आर्मी तैयार कर ली थी। आज स्व.सोहन राठौर के प्रथम पुण्य स्मरण पर भावपूर्ण शब्द श्रद्धांजलि के रूप में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से भावी पीढ़ी को मिलाने का यह छोटा सा प्रयास है।
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हसमुख मिलनसार सेवाभावी काॅलेज चौक की शान
बैतूल बाजार की माटी के सपूत (Sohan Rathore Sonu) सोहन लाल राठौर के हृदयविदारक निधन परिजन सहित जिलेवासी शून्यता महसूस करते है।
सरल- सहज,मृदुभाषी सोहन गांव की माटी की खुशबू को साथ लेकर बड़े सपने संजोकर शहर आया। इस नवयुवक के मन में कुछ कर गुजरने की ललक, देशभक्ति की उमड़ती चाहत ही थी जो उन्हे फर्श से अर्श तक ले गई।छात्र जीवन से नेतृत्व की क्षमता से परिपूर्ण सोहन ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा। कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्पित शैली के साथ पहले कॉलेज जीवन, एनसीसी, झांकी, केटरिंग, अभिनय, नृत्य, नाटक, चाय, होटल, फोटोकॉपी, और इंटरनेट कैफे के माध्यम से अपनी विलक्षण प्रतिभा और कौशल का परिचय दिया। इसी के साथ इस बात का भी जीवंत उदाहरण बने कि काम कोई भी हो छोटा नहीं होता।
एनसीसी में सर्वश्रेष्ठ | Sohan Rathore Sonu Betul
प्रदर्शन के मध्य आर्मी अटेचमेंट का स्वर्णिम अवसर भी सोहन के जीवन में आया पर माँ की ममता को देखते हुए उन्होंने आर्मी में नही जाने का फैसला किया। हालांकि उनकी रगो में देशप्रेम हिलोरे लेता रहा यही वजह थी जो सोहन की आर्मी के अस्तित्व में आने की वजह बनी। सोहन ने युवाओं को आर्मी के लिए तैयार किया,उनके द्वारा दी गई फ़िज़िकल् ट्रेनिंग और सतत् मार्गदर्शन से कई युवा सेना के लिए चयनित हुए, सबको अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाले सोहन भैया की जिले मे अलग धाक थी। हज़ारों युवाओं के चहेते सोहन भैया अपनो से यूं अचानक बिछड़ेंगे किसी ने कल्पना भी नही की होगी, पर सर्व शक्तिमान ईश्वर की सत्ता के आगे हम सब नतमस्तक हैं।
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“शून्य से शिखर ” तक सफर वो भी बिना अभिमान के उनको दूसरों से जुदा बनाता हैं, काॅलेज चौक की शान भैया दूर-दराज से आये ग्रामीण परिवेश के छात्रों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते थे, निस्वार्थ भाव से की गयी सेवा के बदले सिर्फ शुभाषीश मांगते। काॅलेज से पढ़ा शायद ही ऐसा कोई छात्र होंगा जो “सोहन भैया” को नहीं जानता। ऐसे व्यक्तित्व का इतनी जल्दी चले जाना उनको परिवार समेत समूचे नगर और जिले की अपूर्णीय क्षति हैं।
विनम्र श्रद्धांजलि
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