आइए जानते हैं अधिकमास, मलमास और पुरुषौत्तम मास की उत्पत्ति कैसे हुई? और लाभ
Origin of Adhikamas, Malamas and Purushottam month : हिन्दू शास्त्रों में अधिकमास का बहुत अधिक महत्त्व बताया गया है। अधिक मास को मलमास और पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। हर 3 साल में अधिक मास आता है। आइये जानते है इसका इतिहास क्या है ? क्यों इसे अधिक मास कहा जाता है ?और यह क्यों आता है ?
अधिकमास का इतिहास | History of Adhikamas
एक समय था जब हिरण कश्यप ने कड़ी तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न ने किया और ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन देकर कहा की कहो तुम्हें क्या वरदान चाहिए। तब हिरण कश्यप ने प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी से कहा मुझे अमरता का वरदान चाहिए मुझे इस धरती पर कोई ना मार सके, ना मेरी मृत्यु दिन में हो ना ही रात में हो, सुबह हो ना ही शाम में हो, ना दोपहर में ना ही किसी दिन ना किसी महीने में हो, ना किसी साल में ना धरती पर हो ना आसमान में हो।
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तब ब्रह्मा जी ने हिरण्यकश्यप को वरदान दिया फिर हिरण्यकश्यप दिनों-दिन अत्याचार करने लगा क्योकि उसे मृत्यु का भय नहीं था। हिरण्यकश्यप के बढ़ते अत्याचारों को देखकर भगवान ने फिर एक अतिरिक्त महीने की उत्पत्ति की जिसे अधिक मास कहा गया। जिससे हिरण्यकश्यप ने जो वरदान मांगा था वह उससे अलग था क्योंकि यह महीना 12 महीनों में नहीं गिना गया l सभी ग्रह नक्षत्र के स्वामी थे पर अधिक मास का कोई स्वामी नहीं था इसलिए इस माह में कोई मांगलिक कार्य नहीं किए जा सकते थे जिससे इसका नाम मलमास पड़ गया।
क्यों कहते है Adhikamas को पुरुषोत्तम मास
अब मलमास दुखी हो गया क्योंकि इससे सभी लोग घृणा से देखते थे, ना कोई मांगलिक कार्य होते थे, ना कोई शुभ काम तब मलमास ने दुखी होकर अपनी व्यथा विष्णु जी को बताई। तब विष्णु जी ने मलमास को गौ लोक ले कर गए, जहां भगवान कृष्ण थे मलमास ने अपनी व्यथा श्रीकृष्ण को बताई सुनकर कृष्ण ने कहां कि मैं मलमास को अपनी तरह बना देता हूं जितने गुण मुझ में है मलमास में भी उतने गुण होंगे और इसे मेरे नाम से पुरुषोत्तम से जाना जाएगा इसीलिए इसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैंl
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अधिकमास, मलमास और पुरुषौत्तम मास के लाभ
भगवान विष्णु कहते हैं की अधिक मास में जो सच्ची निष्ठा और भक्ति से मेरी उपासना व्रत आदि करते हैं उनसे मैं अन्य महीनों के अतरिक्त जल्दी प्रसन्न होता हूंl ऋषि मुनि सालों तक जंगलों में तप करके जो फल प्राप्त करते है या करते थे यदि अधिक मास में भगवान की उपासना पूजा भक्ति आदि कर लेते हैं तो भगवान वैसा ही फल आपको प्रदान करते हैं जैसा एक तप के बाद मिलता हैl
इस मास में आंवले और तिल का उबटन बनाकर स्नान करना शुभ माना गया हैl साथ ही आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करना भी शुभ माना गया है। अधिक मास में दीपदान करना शुभ माना जाता है, ऐसा करने से मनोकामना पूर्ण होती हैl अधिक मास की पूर्णिमा और अमावस्या को नदी स्नान करना शुभ माना गया है इससे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं दुखो का नाश होता है और भगवान का सानिध्य प्राप्त होता हैl
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