Old Drawing : लोकचित्र शैली लुप्त होने से बचाने का प्रयास

पुरातन लोक चित्रकला संरक्षण के लिए एक हजार से अधिक लोक चित्रों का किया संकलन।

Old Drawing Save : मिट्टी के रंगों से बनाये जाने वाले लोकचित्र ग्रामों में दिपावली के पर्व पर प्रायः देखे जा सकते है। यह लोक चित्र गोंदोनी अब धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है। इसके संरक्षण और संवर्धन हेतु जिला स्तर पर प्रयास किये जा रहे है। जानकारी देते हुए लोक कला से जुड़े महेश गुंजेले ने बताया कि इस पुरातन लोक चित्र कला के संरक्षण के अन्तर्गत विभिन्न ग्रामों से 1000 से अधिक लोकचित्रों का पिछले पांच वर्षों में संकलन किया गया तथा लोक चित्र बनाने वाले कलाकारों से नियमित सम्पर्क कर आगे भी इसके संरक्षण के लिये प्रयास किये जा रहे हैं। जिससे नये लोगों को इस कला के बारे में बताया जा सके।

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नई शिक्षा नीति में भी लोक कलाओं के संरक्षण की पहल कि जा रहीं है जिसमें लोक कलाओं कि विभिन्न विधाओं को जोड़ा गया है। इन लोक चित्रों में लोक चित्रकार गांव से प्राप्त मिट्टी के रंगों को पारम्परिक विधि से तैयार करते हैं। लोक चित्रों के प्राथमिक रंग लाल, पीला, हरा, काला और सफेद प्राचीन समय से प्रचलित हैं। काड़ी में बाल या रूई लपेटकर कलम बनाने की प्रथा भी बहुत पुरानी है। आजकल तैयार ब्रुशों का चलन प्रायः सभी लोकचित्रकार करने लगे हैं, लेकिन ग्रामीण महिलाएं अपने पारम्परिक चित्र आज भी नारियल की नट्टियों में रंग घोलकर काड़ी की कलम से रेखांकन करती दिखाई देती हैं।

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धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक का प्रतिक Old Drawing Save

इन लोकचित्रों के विषय धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक होते हैं। अलंकरण में बिन्दु, रेखा, त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत का प्रयोग बहुतायत से होता है। कहीं-कहीं फूल-पत्ते, बेल, तुलसी, चक्र, शंख, स्वास्तिक, हाथी, घोड़े, मयूर, तोता, नाग, बिच्छू, चिड़िया, पशु-पक्षी आदि की आकृतियां लोकचित्रों में सहजता से मिलती हैं। लोकचित्रों के पीछे कोई न कोई मिथक, मिथकथा या अनुष्ठान निहित होता है। यहां तक कि लोकचित्रों की आकृति रंग और रेखाओं तक के लिये कोई न कोई मिथ जुड़ा रहता है। लोकचित्रों में बनाई जाने वाली आकृतियां यथार्थपरक नहीं होतीं, वे प्रतीकात्मक होती हैं।

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प्रतीकों,बिम्बों के अपने कई निर्धारित अर्थ और गंभीर आशय हैं,जो अपने लोक में ही खुलते हैं। हर अंचल की लोक आकृतियों का पारम्परिक निश्चित आकार-प्रकार होता है। जिससे उस अंचल के चित्रों की एक खास पहचान बनती है।लोकचित्र के दो आन्तरिक भेद होते हैं एक ठेठ पारम्परिक रूप से बनाये जाने वाले, दूसरे पारम्परिकता के साथ कुछ व्यवसायिक प्रतिष्ठा प्राप्त चित्र। ठेठ पारम्परिक चित्र बनाने वाले घर के ही कोई सदस्य खासकर महिलाएं ही होती हैं। आदिवासी लोकचित्र गोदोंनी आदिवासी (Old Drawing ) आस्था और विश्वास के अटक फलक है जो हमारी जीवनी शक्ति के प्राण तत्व बन हमारा मंगल करते हैं।

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