Makar Sankranti Importance: तिल-गुड़, स्नान-दान, हल्दी-कुमकुम आदि का महत्व
Makar Sankranti Importance
Makar Sankranti Importance: सूर्य भ्रमण के कारण होने वाले अंतर को भरने के लिए ही संक्रांति काे एक दिन आगे बढ़ाया जाता है। सूर्य के उत्सव को ‘संक्रांत’ कहते हैं। कर्क संक्रांति के उपरांत सूर्य दक्षिण की ओर जाता है और पृथ्वी सूर्य के निकट जाती है।यह त्योहार मनाते समय इसका महत्व, त्योहार मनाने की पद्धति, तिल गुड़ का महत्व, पर्व काल में दान का महत्व, अन्य स्त्रियों को हल्दी कुमकुम लगाने का आध्यात्मिक महत्व तथा इस दिन की जाने वाली धार्मिक विधियों की जानकारी सनातन संस्था के इस लेख में देने का प्रयास किया गया है।
मकर संक्राति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। हिंदू धर्म में संक्रांति को भगवान माना गया है। भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति का त्योहार आपसी कलह को मिटाकर प्रेमभाव बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन तिल-गुड़ एक-दूसरे को देकर आपसी प्रेम बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।
त्योहार तिथि अयन-वाचक
इस दिन सूर्य का मकर राशि में संक्रमण होता है। वर्तमान में मकर संक्रांति का दिन 14 जनवरी है। सूर्य भ्रमण के कारण होने वाले अंतर को भरने के लिए ही संक्रांति काे 1 दिन आगे बढ़ाया जाता है। सूर्य के उत्सव को ‘संक्रांत’ कहते हैं। कर्क संक्रांति के उपरांत सूर्य दक्षिण की ओर जाता है और पृथ्वी सूर्य के निकट, अर्थात नीचे जाती है। इसे ही ‘दक्षिणायन’ कहते हैं। मकर संक्रांति के पश्चात सूर्य उत्तर की ओर जाता है और पृथ्वी सूर्य से दूर, अर्थात ऊपर जाती है। इसे ‘उत्तरायण’ कहते हैं। मकर संक्रांति अर्थात नीचे से ऊपर चढ़ने का उत्सव, इसलिए इसका अधिक महत्व है। संक्रांति को देवता माना गया है। संक्रांति ने संकरासुर दैत्य का वध किया, ऐसी कथा है।
तिल गुड़ का महत्व (Makar Sankranti Importance)
तिल में सत्वतरंगें ग्रहण और प्रक्षेपित करने की क्षमता अधिक होती है। इसलिए तिल-गुड़ का सेवन करने से अंतःशुद्धि होती है और साधना अच्छी होने में सहायक होते हैं। तिल-गुड़ के दानों में घर्षण होने से सात्विकता का आदान-प्रदान होता है। ‘श्राद्ध में तिल का उपयोग करने से असुर इत्यादि श्राद्ध में विघ्न नहीं डालते।’ सर्दी के दिनों में आने वाली मकर संक्रांति पर तिल खाना लाभप्रद होता है। ‘इस दिन तिल का तेल एवं उबटन शरीर पर लगाना, तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल मिश्रित जल पीना, तिल होम करना, तिल दान करना, इन छहों पद्धतियों से तिल का उपयोग करने वालों के सर्व पाप नष्ट होते हैं।’ संक्रांति के पर्व काल में दांत मांजना, कठोर बोलना, वृक्ष एवं घास काटना तथा कामविषयक आचरण करना, ये कृत्य पूर्णतः वर्जित हैं।
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त्योहार मनाने की पद्धति
सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक पुण्य काल रहता है। इस काल में तीर्थ स्नान का विशेष महत्त्व है। गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के किनारे स्थित क्षेत्र में स्नान करने वाले को महापुण्य का लाभ मिलता है।’
मकर संक्रांति पर दिए गए दान का महत्व (Makar Sankranti Importance)
मकर संक्रांति से रथ सप्तमी तक की अवधि पर्वकाल है। इस पर्व में किया गया दान और शुभ कार्य विशेष फलदायी होता है। धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन दान, जप और साथ ही धार्मिक अनुष्ठानों का अत्यधिक महत्व बताया गया है.
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हल्दी और कुमकुम का आध्यात्मिक महत्व (Makar Sankranti Importance)
हल्दी और कुमकुम लगाने से सुहागिन स्त्रियों में श्री दुर्गा देवी का अप्रकट तत्व जागृत होता है तथा श्रद्धापूर्वक हल्दी और कुमकुम लगाने से यह जीव में कार्यरत होता है। हल्दी-कुमकुम धारण करना अर्थात एक प्रकार से ब्रह्मांड में अव्यक्त आदिशक्ति तरंगों को जागृत होने हेतु आवाहन करना है। हल्दी-कुमकुम के माध्यम से पंचोपचार करना अर्थात एक जीव का दूसरे जीव में उपस्थित देवता तत्व की पूजा करना है। हल्दी, कुमकुम और उपायन देने आदि विधि से व्यक्ति पर सगुण भक्ति का संस्कार होता है साथ ही ईश्वर के प्रति जीव में भक्ति भाव बढ़ने में सहायता होती है।
पतंग न उड़ाएं
इस काल में अनेक स्थानों पर पतंग उड़ाने की प्रथा है परंतु वर्तमान में राष्ट्र एवं धर्म संकट में होते हुए मनोरंजन के लिए पतंग उड़ाना, ‘जब रोम जल रहा था, तब नीरो बंसी (फिडल) बजा रहा था’, स्थिति समान है। पतंग उड़ाने के समय का उपयोग राष्ट्र के विकास में करें, तो राष्ट्र शीघ्र प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा और साधना एवं धर्मकार्य में समय का सदुपयोग करने से अपने साथ समाज का भी कल्याण होगा।
Note: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं।