Kunbi Samaj President Badora: भावना दवंडे बनी कुंबी समाज महिला संगठन बडोरा की अध्यक्ष।

क्षत्रिय लोन्हारी कुंबी समाज महिला संगठन का गठन

Kunbi Samaj President Badora: क्षत्रिय लोन्हारी कुंबी समाज बडोरा का महिला संगठन का गठन किया गया। जिसमें सर्वसम्मति से अध्यक्ष भावना ताई दवंडे को बनाया गया। वहीं उपाध्यक्ष विनीता गव्हाड़े, सचिव रंजीता बारस्कर, सहसचिव श्रीमती दुर्गा कामथकर, कोषाध्यक्ष श्रीमती प्रीति फाटे, प्रचार मंत्री नीतू चढ़ोकार को बनाया गया है।

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वहीं संरक्षक मंडल (Kunbi Samaj President Badora) में श्रीमती सुमित्रा बाई चिल्हाटे, श्रीमती अनिता वागद्रे, श्रीमती गीता माथनकर, श्रीमती चंद्रकला माथनकर, श्रीमती मीना चढ़ोकार शामिल है। महिला संगठन गठित होने पर सामाजिक महिलाओं ने बधाई दी है। कुंबी समाज महिला संगठन बडोरा की अध्यक्ष भावना दवंडे बनी.

Kunbi Samaj शिवाजी महाराज से प्रेरित संगठन हैं अतः

शिवाजी से सम्बंधित कुछ जानकारी जिसमे उनके शासन और व्यक्तित्व की जानकारी हैं।

शिवाजी को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाना जाता है। यद्यपि उनको अपने बचपन में पारम्परिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिली थी, पर वे भारतीय इतिहास और राजनीति से सुपरिचित थे। उन्होंने शुक्राचार्य तथा कौटिल्य को आदर्श मानकर कूटनीति का सहारा लेना कई बार उचित समझा था। अपने समकालीन मुगलों की तरह वह भी निरंकुश शासक थे, अर्थात शासन की समूची बागडोर राजा के हाथ में ही थी। पर उनके प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद थी जिन्हें अष्टप्रधान कहा जाता था।

मंत्रियों के प्रधान को पेशवा कहते थे

इसमें मंत्रियों के प्रधान को पेशवा कहते थे जो राजा के बाद सबसे प्रमुख हस्ती था। अमात्य वित्त और राजस्व के कार्यों को देखता था तो मंत्री राजा की व्यक्तिगत दैनन्दिनी का खयाल रखाता था। सचिव दफ़तरी काम करते थे जिसमे शाही मुहर लगाना और सन्धि पत्रों का आलेख तैयार करना शामिल होते थे। सुमन्त विदेश मंत्री था। सेना के प्रधान को सेनापति कहते थे। दान और धार्मिक मामलों के प्रमुख को पण्डितराव कहते थे। न्यायाधीश न्यायिक मामलों का प्रधान था।

प्रशासन के मामले में स्वतंत्र

मराठा साम्राज्य तीन या चार विभागों में विभक्त था। प्रत्येक प्रान्त में एक सूबेदार था जिसे प्रान्तपति कहा जाता था। हरेक सूबेदार के पास भी एक अष्टप्रधान समिति होती थी। कुछ प्रान्त केवल करदाता थे और प्रशासन के मामले में स्वतंत्र। न्यायव्यवस्था प्राचीन पद्धति पर आधारित थी। शुक्राचार्य, कौटिल्य और हिन्दू धर्मशास्त्रों को आधार मानकर निर्णय दिया जाता था। गांव के पटेल फौजदारी मुकदमों की जांच करते थे।

सरदेशमुखी कर

राज्य की आय का साधन भूमि से प्राप्त होने वाला कर था पर चौथ और सरदेशमुखी से भी राजस्व वसूला जाता था। ‘चौथ’ पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा की गारंटी के लिए वसूले जाने वाला कर था। शिवाजी अपने को मराठों का सरदेशमुख कहते थे और इसी हैसियत से सरदेशमुखी कर वसूला जाता था।

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