IMPORTANCE OF 108: जानिए पूजा पाठ में 108 का रहस्य और महत्व क्या हैं

IMPORTANCE OF 108 IN PUJA:- भारत में सभी धर्म में पूजा करने के नियम अलग अलग है जिसमें हिंदू रीति रिवाज में 108 की संख्या एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। का जप करते समय 108 प्रकार की विशेष भेदक ध्वनी तरंगे उत्पन्न होती है जो किसी भी प्रकार के शारीरिक व मानसिक घातक रोगों के कारण का समूल विनाश व शारीरिक व मानसिक विकास का मूल कारण है।

IMPORTANCE OF 108 IN HINDU RELIGION

बौद्धिक विकास व स्मरण शक्ति के विकास में अत्यन्त प्रबल कारण है ।108 यह अद्भुत व चमत्कारी अंक बहुत समय (काल) से हमारे ऋषि -मुनियों के नाम के साथ प्रयोग होता रहा है।

स्वर माला के अनुसार संख्या 108 का रहस्य

अ→1 … आ→2… इ→3 … ई→4 … उ→5… ऊ→6 … ए→7 … ऐ→8 ओ→9 … औ→10 … ऋ→11 … लृ→12 ,….अं→13 … अ:→14…. ऋॄ →15…. लॄ →16

व्यंजन माला के अनुसार | MYSTERY OF 108

क→1 … ख→2 … ग→3 … घ→4 …ङ→5 … च→6… छ→7 … ज→8 …झ→9… ञ→10 … ट→11 … ठ→12 …ड→13 … ढ→14 … ण→१15 … त→16 …थ→17… द→18 … ध→19 … न→20 …प→21 … फ→22 … ब→23 … भ→24 …म→25 … य→26 … र→27 … ल→28 …व→29 … श→30 … ष→31 … स→32 …ह→33 … क्ष→34 … त्र→35 … ज्ञ→36 …ड़ 37 … ढ़ … 38

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“ओ अहं = ब्रह्म”

ब्रह्म = ब+र+ह+म =23+27+33+25=108

अब नीचे हम 108 के महत्त्व को विस्तार से समझेंगे

  1. यह मात्रिकाएँ (16स्वर +38 व्यंजन=54 ) नाभि से आरम्भ होकर ओष्टों तक आती है, इनका एक बार चढ़ाव, दूसरी बार उतार होता है, दोनों बार में वे 108 की संख्या बन जाती हैं। इस प्रकार 108 मंत्र जप से नाभि चक्र से लेकर जिव्हाग्र तक की 108 सूक्ष्म तन्मात्राओं का प्रस्फुरण हो जाता है। अधिक जितना हो सके उतना उत्तम है पर नित्य कम से कम 108 मंत्रों का जप तो करना ही चाहिए ।
  2. नक्षत्रों की कुल संख्या = 27
    • प्रत्येक नक्षत्र के चरण = 4
    • जप की विशिष्ट संख्या = 108 अर्थात् ॐ मंत्र जप कम से कम 108 बार करना चाहिये।

पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा भी शामिल

  1. एक अद्भुत अनुपातिक रहस्य
    • पृथ्वी से सूर्य की दूरी/ सूर्य का व्यास=108,
    • पृथ्वी से चन्द्र की दूरी/ चन्द्र का व्यास=108,
    • मन्त्र जप 108 से कम नहीं करना चाहिए।
  2. 24 घंटे में एक व्यक्ति सामान्य मनुष्य 21600 बार सांस लेता है। दिन-रात के 24 घंटों में से 12 घंटे सोने व गृहस्थ कर्तव्य में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति जो सांस लेता है वह है 10800 बार। इस समय में ईश्वर का ध्यान करना चाहिए ।
  3. शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर ईश्वर का ध्यान करना चाहिए इसीलिए 10800 की इसी संख्या के आधार पर जप के लिए 108 की संख्या निर्धारित करते हैं।
  4. एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छः माह उत्तरायण में रहता है और छः माह दक्षिणायन में। अत: सूर्य छः माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।

ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है।

  1. इन 12 भागों के नाम – मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं।
  2. इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं।
  3. अत: ग्रहों की संख्या 9 में राशियों की संख्या को 12 से गुणा करें तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।

यह “8″ नंबर क्या है ? | IMPORTANCE OF 10″8″

मन के “8″ भाव जो कि इस प्रकार हैं।

  1. काम ( विभिन्न इच्छायें / वासनायें ) ।
  2. क्रोध।
  3. लोभ।
  4. मोह।
  5. मद ( घमण्ड )।
  6. मत्सर ( जलन )।
  7. ज्ञान।
  8. वैराग।

महान आत्मा के सफर में अहम भूमिका

एक सामान्य आत्मा से महान आत्मा तक की यात्रा का प्रतीक है 108 (IMPORTANCE OF 108) इन आठ भावों में जीवन का ये खेल चल रहा है । सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से नौ रश्मियां निकलती हैं और ये चारो ओर से अलग-अलग निकलती है। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गई। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बनें।

संस्कृत की वर्णमाला इसी पर आधारित हैं

इस तरह सूर्य की जब नौ रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनका पृथ्वी के आठ वसुओ से टक्कर होती हैं। सूर्य की नौ रश्मियां और पृथ्वी के आठ वसुओ के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुई वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गई। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियो पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित है।

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