Ganpati Bappa Moriya : देखें गणपति बप्पा मोरिया बोलने के पीछे का अद्धभुत रहस्य

Ganpati Bappa Moriya : इस समय गणेश जी के बड़े ही प्यारे दिन चल रहे है जिसे हम सभी गणपति उत्सव करते है। गणपति उत्सव को भक्त उत्साह और जोश से गणपति बप्पा मोरया के जयकारे भी लगाते हैं और गणेशजी जन्‍मोत्‍सव मनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते है कि गणेशजी को बप्पा मोरया क्यों कहा जाता हैं। अगर नही तो आज हम आपको इसके पीछे छिपे रहस्य को बताने वाले है।

वैसे तो गणेश जी के जनमोत्स्व के पीछे कई रोचक कहानियां हैं जिनसे गणेशजी की भक्ति जुड़ी हुई है। लेकिन गणेश उत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र से हुई है जिसे आरंभ करने वाले लोकमान्य तिलक को कहा जाता हैं। महाराष्ट्र से यह धीरे-धीरे पूरे देश का उत्सव बन गया। महाराष्ट्र में पिता को बप्पा कहते हैं। गणपति को भक्तों ने धरती वासियों के पिता के रूप में माना और बप्पा कहना शुरू कर दिया इस तरह गणपति बप्पा कहलाने लगे। लेकिन इनके मोरया कहलाने की कहानी बेहद दिलचस्प कही जाती है।

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गणेश पुराण के अनुसार गणेशजी की सवारी मोर को बताया गया है। मोर पर सवार होने के कारण गणेश जी को मयूरेश्वर भी कहते हैं। मयूर इनकी सवारी होने के कारण इन्हें मोरया कहा जाता है। लेकिन मयूरेश्वर और मोरया के साथ एक और रोचक कथा जुड़ी हुई है जिसका संबंध महाराष्ट्र के मयूरेश्वर मंदिर और मोरया गोसावी नामक एक गणेश भक्त से है।

गणपति बप्पा मोरिया बोलने का रहस्य | Ganpati Bappa Moriya Story

लगभग 600 साल पहले महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव में एक गणेश भक्त का जन्म हुआ, जिनका नाम मोरया गोसावी था। ऐसी मान्यता है कि मोरया गोसावी भगवान गणेश के अंश थे। इनका जन्म 1375 ई. में हुआ था। इनके पिता वामन भट्ट थे और इनकी माता का नाम पार्वती बाई था। इनके माता-पिता गणेशजी के अनन्य भक्त थे, इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेशजी ने इनके घर जन्म लेने का वरदान दिया था।

बचपन से ही मोरया गोसावी मयूरेश्वर गणेश की भक्ति में लीन हो गए और हर गणेश चतुर्थी के दिन चिंचवाड़ से 95 किलोमीटर दूर पैदल चलकर मयूरेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए जाते थे। बचपन से लेकर 117 साल तक यह सिलसिला चलता रहा। वृद्धावस्था आ जाने पर इनके लिए इतनी लंबी दूरी तय करके मयूरेश्वर मंदिर पहुंचना कठिन हो गया। एक दिन बप्पा इनके सपने में आए और कहा कि अब तुम्हें मयूरेश्वर मंदिर तक आने की जरूरत नहीं है। कल जब तुम स्नान करके कुंड से निकलोगे तो तुम मुझे अपने पास पाओगे।

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जब मोरया स्वामी सुबह स्नान करके निकलने लगे तो इनके पास गणेशजी की वैसी ही छोटी सी प्रतिमा थी जैसा उन्होंने सपने में देखा था। इन्होंने चिंचवाड़ में उस मूर्ति की स्थापना की और धीरे-धीरे भक्त और भगवान दोनों की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैलने लगी। लोग गणेशजी के साथ उनके भक्त का नाम लेकर जयकारे लगाने लगे। लोगों में भक्त और भगवान का अंतर मिटता चला गया। धीरे-धीरे गणेश जी के भक्तों ने गणेश के गणपति बप्पा मोरया के जयकारे लगाना शुरू कर दिया। तभी से सभी लोग गणेश जी के जन्मोत्त्सव में गणपति बप्पा मोरियाँ के जयकारे लगाते है।

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