Arjun Story: अर्जुन का सफर

Arjun Story : एक बार भगवान् कृष्ण अर्जुन को साथ लेकर घूमने निकले। ग्रीष्म ऋतु थी, बड़ी गरम हवा चल रही थी। अर्जुन को तीव्र प्यास लगी कडवान से अपने प्यास की बात बतायी। तलाशने पर जब दूर एक झोपड़ी दिखायी दी तो अर्जुन ने वहाँ जाकर देखा कि एक संन्यासिनी, तपस्विनी, वृद्धा माँ बैठी है और उसके पास पानी का घड़ा रखा है। वे संन्यासिनी से अनुमति लेकर श्रीजी की चरण सेवा जल पीकर तृप्त हो गये। अर्जुन देखते हैं कि कुटिया में खूँटी पर नंगी तलवार लटक रही है।

अर्जुन ने मन-ही-मन सोचा तपस्विनी बुढ़िया ने अपने पास तलवार क्यों टांग रखी है ? उन्होंने पूछा- ‘मईया ! तूने यह तलवार क्यों टांग रखी है ? इस पर व से में बोली- ‘इसे इसलिये टांग रखा है कि यदि अर्जुन (Arjun) और द्रौपदी मेल जायें तो उनके सिर काट लें।’ अर्जुन कुछ भयभीत भी हुए अपने को छिपाकर बड़ी विनम्रता से पूछा-‘माँ! अर्जुन और द्रौपदी ने तुम्हारा क्या कसूर किया ? ऐसा कौन-सा अपराध हो गया।

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उन दोनों का वध करने को तैयार हो ?’ वृद्धा ने कहा-‘द्रौपदी न भरे स्वामी को अपनी साड़ी बनायी और वह भी रजस्वला की साड़ी। सभी नंगे पैदा होते हैं, वह भी नंगे मर जाती। उसने मेरे भगवान् को रजस्वला की साड़ी बना कर इतना बड़ा अपराध है। वह मुझे ल जाये तो उसे मार डालें।’ अर्जुन (arjun) ने कहा-‘माँ, अर्जुन ने क्या अपराध किया ? वृद्धा माँ बोली- ‘अर्जुन उससे बड़ा अपराधी है।

उसने उनसे घोड़े चलवाये। भगवान् को अपना सारथी बनाया। उनके हाथों में अर्जुन का अपराध सुलिये वह भी अपराधी है।’ अपन को भगवान् श्रीकृष्ण का सबसे बड़ा भक्त मानने वाले अर्जुन ने वहाँ से सिर झुकाकर चले गये।

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