Chandrashekhar Azad : क्रांति की ज्वाला: चंद्रशेखर आजाद
जब देश अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, चंद्रशेखर आजाद के जीवन और बलिदान से प्रेरणा लेना आवश्यक है।
Chandrashekhar Azad : आज भारत के एक अमर क्रांतिकारी, अदम्य साहसी, और देशभक्त, चंद्रशेखर तिवारी (आजाद) की पुण्यतिथि है। 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भावरा में जन्मे चंद्रशेखर आजाद, 24 वर्ष की आयु में शहीद हो गए, लेकिन उनके अदम्य साहस और क्रांतिकारी भावना ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में युवाओं को प्रेरित किया।
तिवारी से बने आजाद
चन्द्रशेखर तिवारी की 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ने के बाद गिरफ्तारी हुई। उस दौरान जब उन्हें जज के सामने पेश किया गया, तो उनके जवाब ने सबके होश उड़ा दिए थे। जब उनसे उनका नाम पूछा गया, तो उन्होंने अपना नाम आजाद और अपने पिता का नाम स्वतंत्रता और माता का नाम भारत माता बताया था। इस बात से जज काफी नाराज हो गया और चंद्रशेखर को 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई।
क्रांति का मार्ग / Chandrashekhar Azad
सन् 1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् 1927 में ‘बिस्मिल’ के साथ ४ प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।
ऐसा भी कहा जाता हैं कि आजाद को पहचानने के लिए ब्रिटिश हुक़ूमत ने 700 लोग नौकरी पर रखे हुए थे। आजाद के संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के सेंट्रल कमेटी मेम्बर वीरभद्र तिवारी अंग्रेजो के मुखबिर बन गए थे और आजाद की मुखबिरी की थी. संगठन के क्रांतिकारी रमेश चंद्र गुप्ता ने उरई जाकर तिवारी पर गोली भी चलाई थी. लेकिन गोली मिस होने से वीरभद्र तिवारी बच गए और गुप्ता की गिरफ्तारी हुई और फिर 10 साल की सजा दी गई थी।
1922 में, उन्होंने काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटा गया था। बाद में, उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के लिए काम किया, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त करना था।
अदम्य साहस और वीरता / Chandrashekhar Azad
1931 में, इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस के साथ मुठभेड़ में, चंद्रशेखर आजाद ने वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी। गोली लगने के बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी और आखिरी गोली खुद को मारकर शहीद हो गए।
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देशभक्ति का प्रतीक
आजाद जी क्रांतिकारी भावना, वीरता और देशभक्ति का प्रतीक हैं। उन्होंने युवाओं को प्रेरित किया कि वे अपनी मातृभूमि के लिए लड़ने से पीछे न हटें।
Chandrashekhar Azad जी का योगदान
- क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी
- काकोरी कांड में महत्वपूर्ण भूमिका
- HRA के लिए काम करते हुए क्रांति का प्रसार
- युवाओं को प्रेरित करने वाला वीरतापूर्ण बलिदान
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आज भी प्रासंगिक
आज, जब देश अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, चंद्रशेखर आजाद के जीवन और बलिदान से प्रेरणा लेना आवश्यक है। उनकी देशभक्ति, वीरता और साहस हमें अपने देश के लिए लड़ने और उसे एक बेहतर स्थान बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
आइए हम इस वीर क्रांतिकारी को श्रद्धांजलि अर्पित करें और उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें।
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